श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त-प्रमेय
जिहि मुखतें जो नाम निकसि जगत परगट भयौ। मोहन जी के पूर्व, सेवक जी ने प्रगट-अप्रगट संबन्धी राधावल्लभीय सिद्धान्त का परिचय यह कर दिया था ‘भक्त की परम प्रीति देखकर श्री श्याम-श्यामा नाम और वाणी के निकट नित्य प्रगट रहते हैं।’’ नाम वाणी निकट, श्याम श्यामा प्रगट सेवकवाणी के विवृत्तिकार लाडिलीदास जी कहते हैं ‘राधारानी, श्याम सुन्दर, सहचरी गण, एवं वृन्दावन यह चारों रस-सिंधु के सार रूप चार चन्द्रमा हैं। यह चारों नाम से प्रगट हुए हैं और नाम इनसे प्रगट हुआ है। नाम और नामी का सम्बन्ध बीज और वृक्ष जैसा है, बीज से वृक्ष प्रगट होता है और वृक्ष से बीज। चारौं मिलि रस सिन्धु के सार चार वर चंद। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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