हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 458

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य

सखीभाव और रासलीला से सम्बंधित एक विवेचन देखिये।

‘गोपिनु कौ प्रेम परबत समान है, औरनि कौ प्रेम कूप वापी, तड़ाग, सरिता तुल्य है। अरु इनके रूप कौ उनमान जनाऊं। सर्वोपरि स्त्रीन में महालक्ष्‍मी कौ रूप हैं। ताके नख छटा की पार्वती, ताके नख छटा की ब्रह्माणी, ताके नख छटा की इंद्राणी, ताके नख छटा कौं सिंघल द्वीप, ताकौ यह जंबू द्वीप। सो लक्ष्‍मी व्रजदेवीन की नख दुति कों न पूजि सकैं। ते व्रजदेवी श्री जुगल किशोर के स्वरूप कौं निजु विहार है ताके दरसबे की अधिकारी नहीं, जाते उनको सपत्नी भाव अचल भयो है। ललितादिक बिनु नित्य विहार के देखिबे कौ कोई अधिकारी नहीं। इनको प्रेम सिन्धु समान है, जामें अनंत गिरि समाहिं ।

‘सो यह सपत्नी भाव क्यों प्रगट भयो? जब वेद ने प्रभु की स्तु‍ति करी तब किशोर रूप प्रभु कौ दरसन भयौ। तब कमनीय मूर्ति देखि कामिनी भाव उपजि आयो। जो श्री ठकुरानी जी संयुक्त दरसन होतौ तौ दासी भाव उपजतौ। तातें श्री ठाकुरानी जी कौ केलि कौ दरसन नाहीं पाबतु।’

‘कोऊ कहै कि दरसन की अधिकारी नाहीं तौ कलपतरु तीर जु रासरस रच्यौ तहां गोपी बुलाईं। सो रास तों श्री प्रियाजू विना होय नाहीं परम सुख की दरस नहीं भई। ताकौ समाधान हैं। द्वै-द्वै गोपिनु में एक-एक रूप धरि खेलें, तहां द्वै स्वरूप में एक गोपी भई। तौजु एक नाइका द्वै नाइक के स्वरूप कौ देखै तौ रसाभास होइ। तातै वै अपने-अपने रस में ऐसी निमग्न भईं जु एक स्वरूप सौं एक सुख मात भईं। ये न समझी इतने स्वरूप प्रगट हैं। जो जानै सो आपहीं सों संयुक्त जानैं। मधि युगल किशोर अरु सहचरी तिन्हैं कहाँ तैं देखै? अरु वे अपने सुख में इन्हें काहे कों देखै? यौं नित्य विहार कों लीला प्रकरण मिल्यौ है अरु न्यारौ है’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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