श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य
‘सर्वोपरि साधन यह है जो रसिक भक्त हैं तिनकी चरन रज बंदै। तिन सौं मिलि किशोरी-किशोर जू के रस की बातैं कहै, सुनै निशि दिन अरु पल-पल उनकी रूप माधुरी विचारत रहैं। यह अभ्यास छाँडे़ नहीं, आलस न करै। तौ रसिक भक्तनि कौ संग ऐसौ है आवश्यक प्रेम कौं अकुंर उपजै। जो कुसंग पशु तैं बचैं, जब ताईं अंकुर रहै। तब ता भजनई जल सौं सींच्यौ करै बारंबार। अरु सतसंग की बार दृढ़ कै करै तो प्रेम की बेलि हिय में बढ़ै। फूलै जड़ नीके गहै तौ चिन्ता कछु नाहीं यह ही यतन है।’
उदाहरण के लिये, हित चतुरासी के पद 58 को ‘भैंटि के मेटि री माई प्रगट जगत भौ’ पंक्ति में आये हुए ‘प्रगट जगत भौ’ का अर्थ इस ग्रन्थ में इस प्रकार लिखा हैं, ‘जगत कहा? जगत में मृत्यु कौ भय है सो दशमी अवस्था नायक जू की भैंटि के मेटिये’। इसी प्रकार पद 44 की ‘नख युग ऊन बने तेरे तन’ पंक्ति में आये हुए ‘नख युग ऊन’ का अर्थ लिखा है, ‘नखबीस; युगचार घटे तौ 16 रहे ते श्रृंगार है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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