हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 457

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य

‘सर्वोपरि साधन यह है जो रसिक भक्त हैं तिनकी चरन रज बंदै। तिन सौं मिलि किशोरी-किशोर जू के रस की बातैं कहै, सुनै निशि दिन अरु पल-पल उनकी रूप माधुरी विचारत रहैं। यह अभ्‍यास छाँडे़ नहीं, आलस न करै। तौ रसिक भक्तनि कौ संग ऐसौ है आवश्‍यक प्रेम कौं अकुंर उपजै। जो कुसंग पशु तैं बचैं, जब ताईं अंकुर रहै। तब ता भजनई जल सौं सींच्यौ करै बारंबार। अरु सतसंग की बार दृढ़ कै करै तो प्रेम की बेलि हिय में बढ़ै। फूलै जड़ नीके गहै तौ चिन्ता कछु नाहीं यह ही यतन है।’

  1. सत्रहवी शती के उत्तरार्ध की एक अन्य गद्य-रचना दामोदर स्वामी जी का ‘भक्ति-भेद-सिद्धान्त’ है। इस छोटे से ग्रन्थ में भक्ति के भेदों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इसका गद्य भी साफ-सुथरा है। एक उदाहरण दिया जाता हैं- ‘जब प्रेम सहित नवधा करै तब लीला, गुन, रूप श्रवन मात्र ही, गान तैं, सुमिरन तैं, चितवन मैं अश्रु, पुलक, रोमांच गदगद, कंप स्वेद, जाड्य, मूर्छा तब प्रेम कहावै। हृदय में अलौंकिक परमानंद सुख उपजै, ताकै आगे सर्व सुख तुच्छ लगैं। धन, राज्य, जस, पुत्र-कलत्र सुख ये तौ नस्वर ही हैं, मुक्ति सुख अविनासी हैं तेऊ तुच्छ लगैं, परमानंद के आगैं। तातै सर्वोपर यही सुख है।’
  2. अठारहवीं शती के आरंभ का एक ग्रन्थ ‘हस्तामलक’ प्राप्त है। इसके रचियता श्री प्राणनाथ हैं। यह गोस्वामी दामोदर चन्द्र जो (1634-1714) के शिष्‍य थे। श्री दामोदर चन्द्र जी हित प्रभु के प्रपौत्र थे और उनके द्वितीय अवतार माने जाते है। इस ग्रन्थ में उक्त गोस्वामी जी के उपदेशों का संग्रह हैं अत: इस सम्प्रदाय में इसका बहुत मान है। इस में उपासना और रस से संबंधित विवादस्पद प्रश्‍नों पर चर्चा की गई हैं। हित चतुरासी के कठिन स्‍थलों को भी इस में खोला गया हैं।

उदाहरण के लिये, हित चतुरासी के पद 58 को ‘भैंटि के मेटि री माई प्रगट जगत भौ’ पंक्ति में आये हुए ‘प्रगट जगत भौ’ का अर्थ इस ग्रन्थ में इस प्रकार लिखा हैं, ‘जगत कहा? जगत में मृत्यु कौ भय है सो दशमी अवस्था नायक जू की भैंटि के मेटिये’। इसी प्रकार पद 44 की ‘नख युग ऊन बने तेरे तन’ पंक्ति में आये हुए ‘नख युग ऊन’ का अर्थ लिखा है, ‘नखबीस; युगचार घटे तौ 16 रहे ते श्रृंगार है।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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