हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 454

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
अर्वाचीन काल (1875)
दोहा

जिय तो‍हि एसी चाहिये सबही की सहि लेहि ।
घट-घट में प्रभु रमि रह्यौ उत्तर काकौं देहिं ।।
तन छुटिबे लौं हद्द है सहि लैं मन धरि धीर ।
क्यों इतनी ममता करै कोटिन छाँड़ि सरीर ।।
क्यों काहू कौं बाबरे अपनौं दु:ख सुनाय ।
वह हिय में दुख पावई तेरी पीर न जाय ।।
रे मूरख क्यों चतुर बनि अरुझत बारंबार ।
भलौ-भलौ कहि छाँड़िदै, बहु बातन व्यौहार ।।
हठ करि पक्ष न रोपिये, नहि करिये उपदेस ।
सब सौं नमि नीचे रहौ छाँड़ि बड़प्पन लेस ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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