श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
अर्वाचीन काल (1875)
हम कह चुके हैं कि भोलानाथ जी वृंदावन आने से पूर्व भी पद रचना करते थे और उनके उस काल के लगभग 600 पद लेखक को कौलारस से प्राप्त हुए है। इनमें से अधिकांश पद ‘विनय’ के हैं और इनमें एक सच्चे भक्त हृदय की महान आकुलता भरी हुई है। वृंदावन निवास-काल के पद अधिक प्रोढ़ और शांत है किंतु प्रेम की नैसर्गिक पीड़ा उनमें भी व्यक्त हुई है। राधावल्लभीय संप्रदाय में नित्य संयोग की उपासना है किंतु उसके साथ पूर्ण अतृप्ति भी विद्यमान रहती है। भोलानाथ जी के पदों में यह अतृप्ति उभर आई है और इसी ने उनके पदों में पीड़ा की गहरी छाया फैलादी है। पद-रचना के अतिरिक्त भोलानाथ जी ने वृंदावन में दो बडे़ ग्रन्थों की भी रचना की जिनमें से एक ‘सुधर्म बोधिनी’ की बिपुल टीका है और दूसरा ब्रह्म सूत्र पर हिंदी में भाष्य है। उनके थोडे़ से पद यहाँ दिये जाते हैं। ऐसी कृपा किन करहु किशोरी । हियरा नन बान सौं बेधहु हँसि-हँसि भौंह मरोरी ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज