हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 443

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
अर्वाचीन काल (1875)

अधिकांश समय में एकांत भजन और पद रचना और निर्दिष्‍ट समय पर राजा साहब के पास जाकर धार्मिक चर्चा करना, यही उनका वहाँ कार्य था। राजा विश्‍वनाथ सिंह प्राचीन ग्रन्‍थों के प्रसिद्ध संग्राहक थे, और उन्‍होंने राधारवल्‍लभीय वाणी ग्रन्‍थों का भी अच्‍छा संग्रह अपने पास कर लिया था। भोलानाथ जी को छतरपुर में रहते हुए अध्‍ययन का बड़ा सुयोग मिला और उन्‍होंने उस काल में वाणियों के साथ विभिन्‍न भारतीय दर्शनों का भी विस्‍तृत अनुशीलन कर लिया। वहाँ रहते हुए ही उन्‍होंने वकालत की और कुछ दिन बाद राज्‍य की नौकरी छोड़ कर भेलसा चले गये।

भेलसा में कुछ दिन वकालत करने के बाद वे कोलारस गये और वहाँ अपने भाई के पास रहकर वकालत करनी चाही किंतु उनका मन वहाँ नहीं लगा और राजा साहब के निमन्‍त्रण पर पुन: छतरपुर चले गये। इस बीच में उनके पुत्र और पत्‍नी का देहांत हो गया और थोडे़ दिन बाद उनके पिता जी भी चले बसे। अब उनको कोई गार्हस्थिक बंधन शेष नहीं रह गया और वे वृन्दावन जाकर वहाँ स्‍थाई रूप से निवास करने लगे।

वृदांबन में कुछ दिनों तक तो इनके भाई शंभूनाथ जी इनको खर्च भेजते रहे किंतु अल्‍प काल में उनके भाई का भी देहांत हो गया और उनको प्राप्‍त होने वाली आर्थिक सहायता बंद हो गयी। इस स्थिति में पड़कर कुछ दिनों तक भोलानाथ जी ने सेवा कुंज में बंदरों के द्वारा छोड़ी हुई चने की ठुड्डियाँ चबाकर जीवन-यापन किया और शांति पूर्वक भजन करते रहे। बाद में श्री राधावल्‍लभ जी के मंदिर में उनके रहने और भोजन का प्रबंध हो गया और वहीं उन्‍होंने 42 वर्ष की अल्‍पायु में अपनी जन्‍म तिथि आषाढ़ शु० 6, सं० 1989 को निकुंज-गमन किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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