श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
अर्वाचीन काल (1875)
अधिकांश समय में एकांत भजन और पद रचना और निर्दिष्ट समय पर राजा साहब के पास जाकर धार्मिक चर्चा करना, यही उनका वहाँ कार्य था। राजा विश्वनाथ सिंह प्राचीन ग्रन्थों के प्रसिद्ध संग्राहक थे, और उन्होंने राधारवल्लभीय वाणी ग्रन्थों का भी अच्छा संग्रह अपने पास कर लिया था। भोलानाथ जी को छतरपुर में रहते हुए अध्ययन का बड़ा सुयोग मिला और उन्होंने उस काल में वाणियों के साथ विभिन्न भारतीय दर्शनों का भी विस्तृत अनुशीलन कर लिया। वहाँ रहते हुए ही उन्होंने वकालत की और कुछ दिन बाद राज्य की नौकरी छोड़ कर भेलसा चले गये। भेलसा में कुछ दिन वकालत करने के बाद वे कोलारस गये और वहाँ अपने भाई के पास रहकर वकालत करनी चाही किंतु उनका मन वहाँ नहीं लगा और राजा साहब के निमन्त्रण पर पुन: छतरपुर चले गये। इस बीच में उनके पुत्र और पत्नी का देहांत हो गया और थोडे़ दिन बाद उनके पिता जी भी चले बसे। अब उनको कोई गार्हस्थिक बंधन शेष नहीं रह गया और वे वृन्दावन जाकर वहाँ स्थाई रूप से निवास करने लगे। वृदांबन में कुछ दिनों तक तो इनके भाई शंभूनाथ जी इनको खर्च भेजते रहे किंतु अल्प काल में उनके भाई का भी देहांत हो गया और उनको प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता बंद हो गयी। इस स्थिति में पड़कर कुछ दिनों तक भोलानाथ जी ने सेवा कुंज में बंदरों के द्वारा छोड़ी हुई चने की ठुड्डियाँ चबाकर जीवन-यापन किया और शांति पूर्वक भजन करते रहे। बाद में श्री राधावल्लभ जी के मंदिर में उनके रहने और भोजन का प्रबंध हो गया और वहीं उन्होंने 42 वर्ष की अल्पायु में अपनी जन्म तिथि आषाढ़ शु० 6, सं० 1989 को निकुंज-गमन किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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