हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 434

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री हित रूपलाल काल के अन्य प्रमुख वाणीकार

हम रस सिन्धु तरंग मनोरथ को करि सकै बखान।
उदै होत छिन-छिन नव-नव रति मिलि विलसन रुचि मान।।
मान-विरह रस केलि दुखद लखि झिझके चतुर सुजान।
तहाँ सहायक मर्मी धीरा हित बिनु कोऊ न आन।।
ज्यौं सरबत में मिर्च इलायची नींबू है रस दान।
त्यौं रस मधु अदाय भ्रू-भंगी नेति-नेति सुख खान।।
अंग-अंग मिलि स्वाद मदन रस तन असंग रस आन।।
तदाकार ह्वै महा भाव रस बिसरे केलि-कलान।।
भाव रूप में अचल भये चित नित अखंड सुख मान।
सखी सबै मन-वृत्ति हमारी लीन भईं तहाँ आन।।
तहाँ जु सावधान हरिवंशी खेल खिलारी जान।
फेरि जगाय किये ज्यौं के त्यौं निज दासी[1] बलि जान।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पदों में लाड़िलीदास जी ने अपना नाम ‘निजदासी’ लिखा है।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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