हर्षित होता देख परम जो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

अभिलाषा

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राग बसन्त - ताल कहरवा

 
हर्षित होता देख परम जो जग में अपना बढ़ता मान।
घिरा देख जो जन-समूह से अपनी बढ़ी मानता शान॥
जो पिछलग्गू प्रशंसकों की अपने पीछे सेना जान।
हर्षोन्मत्त हु‌आ, दिखलाता निज ऊँचेपन का अभिमान॥
तो वह भूला है, इसमें कुछ भी है नहीं मान की बात।
जग के हो-हल्ले का को‌ई मूल्य नहीं, यह जग-विख्यात॥
पर तथापि यदि मान किसी का बढ़ता, बिना किसी अनुपात।
मिलता उसे अमित सुख इससे, हो उठता यदि पुलकित-गात ॥
मिले सदा सुख उसे अपरिमित, बढ़े सदा उसका सम्मान।
कोटि-कोटि जन मानें उसको, प्रभु ऐसा ही करें विधान॥
हो असीम आह्लाद देखकर उसका मुख प्रसन्न अम्लान।
यही प्रार्थना, प्रभु से सविनय, पूरी करें सत्य भगवान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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