हरि सँग खेलन फागु चली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग श्रीहठी


हरि सँग खेलन फागु चली।
चोवा चंदन अगरु अरगजा, छिरकतिं नगर चली।।
राती पीरी अँगिया पहिरे, नव तन झूमक सारी।
मुख तमोर, नैननि भरि काजर, देहि भावती गारी।।
रितु बसंत आगम रतिनायक, जोबन-भार-भरी।
देखन रूप मदनमोहन कौ, नंददुवार खरी।।
कहि न जाइ गोकुल कौ महिमा, घर घर बीथिनि माही।
'सूरदास' सो क्यौ करि बरनै, जो सुख तिहुँ पुर नाही।।2873।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः