हरि दरसन कौ तलफत नैन।
अरु जो चाहत भुजा मिलन कौ, स्त्रवन सुनन कौ बैन।।
जिय तलफत है वन विहरन कौ, तुम मिलि अरु सब सखियाँ।
कल न परत तुम बिनु हम इक छिन, रोवति दिन अरु रतियाँ।।
जब तै तुम हरि बिछुरे हम तै, निसि वासर नहिं चैन।
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस कौ, काग उड़ावतिं सैन।।4029।।