हरि तुम हरो जन की भीर -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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स्‍तुति प्रार्थना


राग श्‍मामकल्‍याण


हरि तुम[1] हरो जन की भीर ।। टेक ।।
द्रोपता की लाज राखी, तुरत[2] बाढ्यौ चीर ।
भक्‍त कारण रूप नरहरि, धर्यौ आप सरीर ।
हिरणाकुश मारि लीन्ह, धीरयौ नाहिं न धीर ।
बूड़तो गजराज राख्‍यौ,[3] कियौ बाहर नीर ।
दासी मीरा लाल गिरधर, चरण कँवल पै सीर ।।63।।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. करिहो
  2. तुम बढ़ायौ
  3. तार्यो
  4. जन भक्त। भीर = संकट, कष्ट। द्रोपता = द्रौपदी। बाढ्यौ = बढ़ा दिया। रूपनर हरि = नृसिंहरूपी। सरीर = देह, अवतार। हिरणाकुश = हिरण्य कशिपु। मारि लीन्हौ = वध कर दिया। बूड़तो = डूबते हुए। राख्यौ = बचा लिया। पै = पर। सीर = सिर।

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