हरि तुम बलि कौं छलि कहा लीन्यौ -सूरदास

सूरसागर

अष्टम स्कन्ध

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हरि तुम बलि कौं छलि कहा लीन्यौ?
बाँधन गए बँधाए आपुन, कौन सयानप कीन्यौ ?
लए लकुटिया द्वारै ठाढ़े , मन अति रहत अधीन्यौ?
तीनि पैड़ बसुधा कै कारन, सरबस अपनौ दीन्यौ।
जो जस करै सो पावै तैसो, वेद पुरान कहीन्यौ।
सूरदास स्वामी पन तजि कै, सेवक-पन रस भीन्यौ।।15।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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