हरि तुम बलि कौं छलि कहा लीन्यौ?
बाँधन गए बँधाए आपुन, कौन सयानप कीन्यौ ?
लए लकुटिया द्वारै ठाढ़े , मन अति रहत अधीन्यौ?
तीनि पैड़ बसुधा कै कारन, सरबस अपनौ दीन्यौ।
जो जस करै सो पावै तैसो, वेद पुरान कहीन्यौ।
सूरदास स्वामी पन तजि कै, सेवक-पन रस भीन्यौ।।15।।