हरि छबि अंग नट के ख्याल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


हरि छबि अंग नट के ख्याल।
नैन देखत प्रगट सब कोउ, कनक, मुक्ता, लाल।।
छिनक मैं मिटि जात सो पुनि, और करत बिचार।
त्यौ हियै छवि और औरै, रचत चरित अपार।।
लहै तब जब हाथ आवै, दृष्टि नहि ठहरात।
वृथा भूले रहत लोचन, इन कहै कोउ बात।।
रहत निसि दिन संग हरि के, हरष नाहि समात।
'सूर' जब जब मिले हमकौ, महा बिहवल गात।।2309।।

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