हरि कौ बदन रूप-निधान।
दसन दाड़िम-बीज राजत, कमल-कोष समान।।
नैन पंकज रुचिर द्वै दल, चलत भौंहनि बान।
मध्य स्याम सुभाग मानौ, अली बैठ्यौ आन।।
मुकुट कुंडल-किरनि करननि, किये किरनि को हान।
नासिका, मृग-तिलक ताकत, चिबुक चित्त भुलान।
सूर के प्रभु निगम बानी, कौन भाँति बखान।।1379।।