हरि की प्रीति उर माहिं करकै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री


हरि की प्रीति उर माहिं करकै।
आइ अक्रूर चले लै स्यामहि, हित नाही कोउ हरकै।।
कंचन कौ रथ आगै कीन्हौ, हरहिं चढ़ाये बर कै।
'सूरदास' प्रभु सुख के दाता, गोकुल चले उजरि कै।।2987।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः