हरि कहँ इते दिन लाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


हरि कहँ इते दिन लाए।
आवन कौ कहि गए सु तौ, अबहुँ नहिं आए।।
चलत चितै मुसकाइ कै, मृदु वचन सुनाए।
तेई ठग-मोदक भऐ, धीरज छिटकाएँ।।
जग मोहन जदुनाथ के, गुन जानि न पाए।
मनहुँ ‘सूर’ इहिं लाज तै, नहिं चरन दिखाए।। 3397।।

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