स्याम प्रगट कीन्हौ अनुराग।
अति आनंद मनहि मन नागरि बदति आपने भाग।।
सुंदर घन उत ब्रजहि सिधारे, इतहिं गमन कियौ नारि।
दंपति नैन रहे दोउ भरि भरि, गए सुरति रति सारि।।
जननी मन अबसेर करति ही, हरि पहुँचे तिहिं काल।
'सूर' स्याम की मातु अंक भरि, कहति जाउँ बलि लाल।।2002।।