स्याम नग जानि हिरदै चुरायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड़ मलार


स्याम नग जानि हिरदै चुरायौ।
चतुर बर नागरी, महा मनि लखि लियौ, प्रिय सखी संग तिहिं नहिं जनायौ।।
कृपन ज्यौं धरत धन, ऐसें दृढ़ कियौ मन, जननि सुनि बात हँसि कंठ लायौ।।
गाँस दियौ डारि, कह्यौ कुँवरि मेरी वारि, सूर-प्रभु-नाम झूठैं उड़ायो।।1719।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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