स्याम धरयौ तियमोहन रूप।
दूती प्रिया संग इक लीन्हे, अंग त्रिभंग अनूप।।
अंतरद्वार आइ भए ठाढ़े, सुनत तिया की बातै।
सरुस बचन जु कहति सखि आगै, कहौ मिलै किहिं नातै।।
कपटी, कुटिल, क्रूर कहि आवत, यह सुनि सुनि मुसुकात।
'सूरदास' प्रभु हैं बहुनायक, तुहीं कहति यह बात।।2699।।