स्याम की लीला सुख की खान -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग तिलंग - तीन ताल


स्याम की लीला सुखकी खान।
प्रकटत दुरत पलहि पल हम सँग खेलत करत गुमान॥
दीखत ही, नहिं दीखत कबहूँ, नहिं दीखत दरसात।
आवन में जावन सो लागत छिन छिन आवत जात॥
हँसत हँसात, नचावत नाचत, गावत दै दै ताल।
मानत मान, मनावत कबहूँ, रूठि फुलावत गाल॥
छलत छलत मन-मोद भरावत करत फरेबी बात।
नैनन नैन मिलावत कबहूँ, हिय सों हियो लगात॥
बिधुरत मिलत, मिलत ही बिछुरत रात दिना यह काम।
जाग्रत सुपन एक सो मानत लीला करत ललाम॥
तन मन धन मरजाद धरम की, लोक लाज कुलकान।
भुक्ति मुक्ति सबकी सुधि बिसरी लखि मोहनि मुस्कान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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