स्याम-हृदय बर मोतिनि माला। बिथकित भई निरखि ब्रज-बाला।
स्रवन थके सुनि बचन रसाला। नैन थके दरसन नँद-लाला।
कंबु-कंठ, भुज नैन बिसाला। कर केयुर कंचन नग-जाला।
पल्लव हस्त मुद्रिका भ्राजै। कौस्तुभ मनि हृदय स्थल छाजै।
रोमावली बरनि नहिं जाई। नाभि स्थल की सुंदरताई।
कोटि किंकिनी चंद्रमनि-संजुत। पीतांबर, कटि-तट छबि अद्भुत।
जुगल जुध की छबि न सँभारै। नारि-निकर मन बुद्धि बिचारै।
रतन जटित कंचन कल नूपुर। मंद-मंद गति चलत मधुर सुर।
जुगल कमल-पद नख मनि-आभा। संतनि-मन संतत यह लाभा।
जो जिहिं अंग सु तहाँ भुलानी। सूर स्याम-गति काहु न जानी।।625।।