- भीष्म दुर्योधन को बताते हैं जब शिखण्डी पुरुष बन गया और स्थूणाकर्ण स्त्री तब एक दिन कुबेर स्थूणाकर्ण से मिलने आये परंतु स्थूणाकर्ण उनके सामने नहीं आया इससे क्रोधित होकर कुबेर स्थूणाकर्ण को शाप दे देते हैं और कहते हैं कि 'तू अब स्त्री ही बना रहे और शिखण्डी पुरुषरूप में ही रह जाय।' तब यक्ष उनको समझाते हैं बारंबार आग्रहपूर्वक कहते हैं कि- ‘भगवन! आप इस शाप का अन्त कर दीजिये। तब कुबेर कहते है कि ये शाप टाला तो नहीं जा सकता हैं परंतु शिखण्डी के मारे जाने पर यह स्थूणाकर्ण यक्ष अपना पूर्णरूप फिर प्राप्त कर लेगा, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में अम्बोपाख्यान पर्व के अंतर्गत 192वें अध्याय में हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
कुबेर का स्थूणाकर्ण के घर प्रवेश
उधर कुछ काल के पश्चात नरवाहन कुबेर लोक में भ्रमण करते हुए स्थूणाकर्ण के घर पर आये। उसके घर के ऊपर आकाश में स्थित होकर धनाध्यक्ष कुबेर ने उसका अच्छी तरह अवलोकन किया। स्थूणाकर्ण यक्ष का वह भवन विचित्र हारों से सजाया गया था। खश की और अन्य पदार्थों की सुगन्ध से भी अर्चित तथा चंदोवों से सुशोभित था। उसमें सब ओर धूप की सुगन्ध फैली हुई थी। अनेकानेक ध्वज और पताकाएं उसकी शोभा बढा़ रही थीं। वहाँ भक्ष्य, भोज्य, पेय आदि सभी वस्तुएं, जिनका दन्त और जिह्वा द्वारा उदराग्नि में हवन किया जाता है, प्रस्तुत थीं। तत्पश्चात कुबेर ने उस भवन में प्रवेश किया। कुबेर ने उसके निवास स्थान को सब ओर से सुसज्जित, मणि, रत्न तथा सुवर्ण की मालाओं से परिपूर्ण, भाँति-भाँति के पुष्पों की सुगन्ध से व्याप्त तथा झाड़-बुहार और धो-पोंछ देने-के कारण शोभासम्पन्न देखकर यक्षराज ने स्थूणाकर्ण के सेवकों से पूछा- ‘अमित पराक्रमी यक्षो! स्थूणाकर्ण का यह भवन तो सब प्रकार से सजाया हुआ दिखायी देता है, इससे सिद्ध है कि वह घर में ही है, तथापि वह मूर्ख मेरे पास आता क्यों नहीं है?
‘वह मन्दबुद्धि यक्ष मुझे आया हुआ जानकर भी मेरे निकट नहीं आ रहा है इसलिये उसे महान दण्ड देना चाहिये, ऐसा मेरा विचार है।' यक्षों ने कहा- राजन! राजा द्रुपद के यहाँ एक शिखण्डिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई है। उसी को किसी विशेष कारणवश इन्होंने अपना पुरुषत्व दे दिया है और उसका स्त्रीत्व स्वयं ग्रहण कर लिया है। तब से वे स्त्रीरूप होकर घर में ही रहते हैं। स्त्रीरूप में होने के कारण ही वे लज्जावश आप के पास नहीं आ रहे हैं। महाराज! इसी कारण से स्थूणाकर्ण आज आपके सामने नहीं उपस्थित हो रहे हैं। यह सुनकर आप जैसा उचित समझें, करें। आज आपका विमान यहीं रहना चाहिये।[1]
कुबेर का स्थूणाकर्ण को शाप देना
तब यक्षराज ने कहा- ‘स्थूणाकर्ण को यहाँ बुला ले आओ। मैं उसे दण्ड दूंगा।’ यह बात उन्होंने बार-बार दुहरायी। राजन! इस प्रकार बुलाने पर वह यक्ष कुबेर की सेवा में गया। महाराज! वह स्त्रीरूप धारण करने के कारण लज्जा में डूबा हुआ उनके सामने खड़ा हो गया। कुरुनन्दन! उसे इस रूप में देखकर कुबेर अत्यन्त कुपित हो उठे और शाप देते हुए बोले- ‘गुह्यको! इस पापी स्थूणाकर्ण का यह स्त्रीत्व अब ऐसा ही बना रहे’। तदनन्तर महात्मा यक्षराज ने उस यक्ष से कहा- ‘पापबुद्धि और पापाचारी यक्ष! तूने यक्षों का तिरस्कार करके यहाँ शिखण्डी को अपना पुरुषत्व दे दिया और उसका स्त्रीत्व ग्रहण कर लिया है। दुर्बुद्धे! तूने जो यह अव्यावहारिक कार्य कर डाला है, इसके कारण आज से तू स्त्री ही बना रहे और शिखण्डी पुरुषरूप में ही रह जाय।'[2]
कुबेर का वापिस जाना
तब यक्षों ने अनुनय-विनय करके स्थूणाकर्ण के लिये कुबेर-को प्रसन्न किया और बारंबार आग्रहपूर्वक कहा- ‘भगवन! इस शाप का अन्त कर दीजिये।' तात! तब महात्मा यक्षराज ने स्थूणाकर्ण का अनुगमन करने वाले उन समस्त यक्षों से उस शाप का अन्त कर देने की इच्छा से इस प्रकार कहा- ‘यक्षो! शिखण्डी के मारे जाने पर यह स्थूणाकर्ण यक्ष अपना पूर्णरूप फिर प्राप्त कर लेगा। अत: अब इसे निर्भय हो जाना चाहिये।’ ऐसा कहकर महामना भगवान यक्षराज कुबेर उन यक्षों द्वारा अत्यन्त पूजित हो निमेष मात्र में ही अभीष्ट स्थान पर पहुँच जाने वाले अपने समस्त सेवकों के साथ वहाँ से चले गये।
शिखण्डी और यक्ष का संवाद
उस समय कुबेर का शाप पाकर स्थूणाकर्ण वहीं रहने लगा। शिखण्डी पूर्व निश्चित समय पर उस निशाचन स्थूणाकर्ण के पास तुरंत आ गया। उसके निकट जाकर शिखण्डी ने कहा- ‘भगवन! मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूँ।’ तब स्थूणाकर्ण ने उससे बारंबार कहा- ‘मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ, बहुत प्रसन्न हूँ’ राजकुमार शिखण्डी को सरलतापूर्वक आया हुआ देख उससे यक्ष ने अपना सारा वृत्तान्त ठीक-ठीक कह सुनाया।
यक्ष ने कहा- राजकुमार! तुम्हारे लिये ही यक्षराज ने मुझे शाप दे दिया है अत: अब जाओ, इच्छानुसार सारे जगत में सुखपूर्वक विचरो। मैं इसे अपना पुरातन प्रारब्ध ही मानता हूँ, जो कि तुम्हारा यहाँ से जाना और उसी समय यक्षराज कुबेर का यहाँ आकर दर्शन देना हुआ। अब इसे टाला नहीं जा सकता।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 192 श्लोक 22-42
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 192 श्लोक 43-62
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| अर्जुन का कथन
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| धृतराष्ट्र का कृष्ण की अगवानी करके उन्हें भेंट देने का विचार
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| गरुड़ पर सवार गालव का उनके वेग से व्याकुल होना
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| दिवोदास का ययातिकन्या से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना
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| ययाति का स्वर्गलोक से पतन
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| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को पुन: समझाना
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| सात्यकि द्वारा दुर्योधन के षड़यंत्र का भंडाफोड़
| धृतराष्ट्र और विदुर का दुर्योधन को पुन: समझाना
| कृष्ण का विश्वरूप
| कृष्ण का कौरवसभा से प्रस्थान
| कुंती का पांडवों के लिये संदेश
| कुंती द्वारा विदुलोपाख्यान का प्रारम्भ
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| विदुला और उसके पुत्र का संवाद
| विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
| विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
| कुंती का संदेश तथा कृष्ण का उनसे विदा लेना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को समझाना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को पुन: संधि के लिए समझाना
| कृष्ण का कर्ण को पांडवपक्ष में आने के लिए समझाना
| कर्ण का दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चित विचार
| कर्ण द्वारा कृष्ण से समरयज्ञ के रूपक का वर्णन
| कृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से अपने स्वप्न का वर्णन
| कुंती का कर्ण के पास जाना
| कुंती का कर्ण से पांडवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध
| कर्ण की अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा
| कृष्ण का युधिष्ठिर से कौरवसभा में व्यक्त किये भीष्म के वचन सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रोणाचार्य, विदुर तथा गांधारी के महत्त्वपूर्ण वचनों का वर्णन
| दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचनों का वर्णन
| कृष्ण का कौरवों के प्रति दण्ड के प्रयोग पर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव
| पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश
| कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण
| दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश
| कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना
| युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन
| दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक
| दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक
| युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक
| बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
| रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन
| धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना
| पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना
| पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
| पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
| धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
| कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद
| भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन
| पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा
| पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन
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| भीष्म और परशुराम का युद्ध
| भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति
| भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
| भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति
| अम्बा की कठोर तपस्या
| अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश
| अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण
| शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप
| हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना
| द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन
| शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना
| शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
| स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
| भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय
| भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन
| अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना
| कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान
| पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान
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