स्थूणाकर्ण अस्त्र

Disamb2.jpg स्थूणाकर्ण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- स्थूणाकर्ण (बहुविकल्पी)

स्थूणाकर्ण का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। यह एक पौराणिक अस्त्र था।

महाभारत द्रोणपर्व में श्रीकृष्ण एक स्थान पर अर्जुन से कहते हैं- "पार्थ! एक समय की बात है, रोहिणीनन्दन बलरामजी ने युद्ध में जरासंध को पछाड़ दिया था। इससे कुपित होकर जरासंघ ने हम लोगों के वध के लिये अपनी सर्वघातिनी गदा का प्रहार किया। अग्नि के समान प्रज्वलित वह गदा इन्द्र के चलाये हुए वज्र की भाँति आकाश में सीमन्त रेखा सी बनाती हुई वहाँ गिरती दिखायी दी। वहाँ गिरती हुई उस गदा को देखते ही उसके प्रतिघात (निवारण) के लिये रोहिणीनन्दन बलराम जी ने 'स्थूणाकर्ण' नामक अस्त्र का प्रयोग किया। उस अस्त्र के वेग से प्रतिहत होकर वह गदा पृथ्वी देवी को विदीर्ण करती और पर्वतों को कँपाती हुई सी भूतल पर गिर पड़ी। जिस स्थान पर गदा गिरी, वहाँ उत्तम बल-पराक्रम से सम्पन्न 'जरा' नामक एक भयंकर राक्षसी रहती थी। उसी ने जन्म के पश्चात शत्रुदमन जरासंघ के शरीर को जोड़ा था। उसका आधा-आधा शरीर अलग-अलग दो माताओं के पेट से पैदा हुआ था। जरा ने उसे जोड़ा था, इसीलिये उसका नाम जरासंध हुआ। पार्थ! भूमि के भीतर रहने वाली वह राक्षसी उस गदा से तथा स्थूणाकर्ण नामक अस्त्र के आघात से पुत्र और बन्धु-बान्धवों सहित मारी गयी।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 181 श्लोक 1-20

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