सौ दिन को मारग तहाँ की बिदा मांगी पिया ,
प्यारो पदमाकर प्रभात राति बीते पर ।
सो सुनि पियारी पिय गमन बराइबे को ,
आंसुन अन्हाइ बैठी आसन सुतीते पर ।
बालम बिदेसै तुम जात हौ तो जाउ पर ,
साँची कहि जाउ कब ऎहौ भौन रीते पर ।
पहर कै भीतर कै दोपहर भीतर ही ,
तीसरे पहर केधौं साँझ ही बितीते पर ।