सोभित सुभग नंद जू की रानी।
अति आनँद आँगन मैं ठाढ़ो, गोद लिये सुत सारँगपानी।
तृनावर्त को सुरति आनि जिय, पठयौ असुर कंस अभिमानी।
गरू भए, महि मैं वैठाए, सहि न सको जननी अकुलानी।
आपुन गई भवन मैं दौरी, कछु इक काज रही लपटानी।
बौंडर महा भयावन आयौ, गोकुल सबै प्रलय करि मानी।
महा दुष्ट लै उड़यौ गुपालहिं, चल्यौ अकास कृष्न यह जानी।
चापि ग्रीव हरि प्रान हरे, दृग-रकत-प्रवाह चल्यौ अधिकानी।
पाहन सिला निरखि हरि डारयौ, ऊपर खेलत स्याम बिनानी।
ब्रज-जुवतिनि उपवन मैं पाए, लयौ उठाइ कंठ लपटानी।
लै आई गृह चूमति-चाटति, घर-घर सबनि बवाई मानी।
देति अभूषन वारि-वारि सब, पोवतिं सूर वारि सब पानी।।78।।