सेवाकुंज, वृन्दावन

सेवाकुंज, वृन्दावन
निकुंज वन, वृन्दावन
विवरण सेवाकुंज राधादामोदर जी मन्दिर के निकट ही कुछ पूर्व-दक्षिण कोण में स्थित है। यहाँ एक छोटे-से मन्दिर में राधिका के चित्रपट की पूजा होती है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
यातायात बस, ऑटो, कार आदि
संबंधित लेख निधिवन वृन्दावन, राधादामोदर मन्दिर, वृन्दावन, बाँके बिहारी मंदिर, रंगनाथ जी मन्दिर, वृन्दावन, रंगजी मन्दिर वृन्दावन, वृन्दावन
अन्य जानकारी सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहाँ आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है।
अद्यतन‎

सेवाकुंज वृन्दावन, मथुरा के प्राचीन दर्शनीय स्थलों में से एक है। इसे 'निकुंज वन' भी कहते हैं। सेवाकुंज राधादामोदर जी मन्दिर के निकट ही कुछ पूर्व-दक्षिण कोण में स्थित है। यहाँ एक छोटे-से मन्दिर में राधिका के चित्रपट की पूजा होती है।

राधा तू बडिभागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारनतरन सो तेरे आधीन।।

भक्त रसखान ब्रज में सर्वत्र कृष्ण का अन्वेषण कर हार गये, तो अन्त में यहीं पर रसिक कृष्ण का दर्शन हुआ। उन्होंने उसको अपने सरस पदों में इस प्रकार व्यक्त किया है-

देख्यो दुर्यों वह कुंज कुटीर में।
बैठ्यो पलोटत राधिका पायन।।

नामकरण

वृन्दावन के प्राचीन दर्शनीय स्थल सेवाकुंज के भ्रमण से भक्तों की उक्त भावना एवं जिज्ञासा और भी प्रबल हो जाती है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण अपनी शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवं आह्लादिनी शक्ति राधा के चरण कमल पलोटते हैं। रासलीला के श्रम से व्यथित राधाजी की भगवान द्वारा यह सेवा किए जाने के कारण इस स्थान का नाम 'सेवाकुंज' पड़ा। लता दु्रमों से आच्छादित सेवाकुंज के मध्य में एक भव्य मंदिर है, जिसमें श्रीकृष्ण-राधाजी के चरण कमल पलोटते हुए अति सुंदर रूप में विराजमान हैं। राधाजी की ललितादि सखियों के भी चित्रपट मंदिर की शोभा बढा रहे हैं।

ललिताकुण्ड

सेवाकुंज में 'ललिताकुण्ड' है, जहाँ रास के समय ललिताजी को प्यास लगने पर कृष्ण ने अपनी वेणु (वंशी) से खोदकर एक सुन्दर कुण्ड को प्रकट किया था। जिसके सुशीतल मीठे जल से सखियों के साथ ललिताजी ने जलपान किया था। पास ही केलि कदम्ब नामक एक वृक्ष है, जिसकी प्रत्येक गाँठ में शालिग्राम जैसे कुछ उभरे हुए दाग़ दीख पड़ते हैं।

जनश्रुति

सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहाँ आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है। यहाँ बंदरों की भरमार है, लेकिन कहा जाता है कि रात्रि में सेवाकुंज में मनुष्य तो क्या कोई पशु पक्षी भी नहीं ठहरता। बंदर भी अन्यत्र चले जाते हैं। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने यात्रियों को इस प्राचीन स्थल की जानकारी देने के लिए यहाँ एक प्रस्तर पट्ट लगा रखा है, जिसमें लिखा हुआ है- "प्राचीन वृन्दावन में लता कुंजों की विपुलता का परिचय कराने वाला यह मनोरम एवं रमणीक स्थल, जिसके महल में श्रीराधारानी जी का सुंदर मंदिर है और उसके निकट ही दर्शनीय ललिताकुण्ड है। यह वनखंड वृन्दावन नगर की आबादी के मध्य लाल पत्थर की चारदीवारी से घिरा हुआ है। किवदंती के अनुसार अब भी हर रात्रि में श्रीकृष्ण एवं राधारानी की दिव्य रासलीला यहाँ होती है। रात्रि में यहाँ कोई नर-नारी तो क्या पशु पक्षी भी नहीं ठहरता है। गोस्वामी श्रीहितहरिवंश जी ने सन 1590 में अन्य अनेक लीला स्थलों के साथ इसे भी प्रकट किया था।


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