सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट
यहाँ भगवान् कपिल से माता देवहूति ने प्रार्थना की- ‘हे प्रभु! आपने मेरे अज्ञान को भस्म कर दिया। अब मुझे वह आत्म ज्ञान समझा दीजिये, जिससे जन्म और मृत्यु का दुःख नष्ट हो जाय।’ (यह सुन कर) श्री कपिल जी ने कहा- ‘मैं तुमसे ब्रह्म ज्ञान का वर्णन करता हूँ, जिसे जान कर मनुष्य मुक्त हो जाता हैं। मुक्त-पुरुषों के लक्षणों का भी वर्णन करता हूँ और तुम्हारे सभी संदेहों को भस्म कर देता (मिटा देता) हूँ। जो मेरे स्वरूप को समस्त शरीर में व्यापक समझकर अन्य समस्त उद्योगों (आसक्ति-जन्य कार्यों) को त्यागकर मग्न (उसी में तन्मय) रहता है और मन में सुख-दुःख कुछ नहीं ले आता (दो में से किसी से प्रभावित नहीं होता), हे माता! वही मनुष्य मुक्त कहलाता है। जो मेरे स्वरूप को नहीं जानता, कुटुम्ब के लिये ही सदा उद्योग करता है, जिसका पूरा जन्म इसी प्रकार (कुटुम्ब में आसक्त रहकर ही) व्यतीत होता है, वह मनुष्य मर कर नरक में जाता हैं। ज्ञानी की संगति करने से ज्ञान उत्पन्न होता है और अज्ञानी के संग से अज्ञान होता है इसलिये सदा सत्पुरुषों का संग करना चाहिये, जिससे जन्म और मरण मिट जायँ। स्थावर (अचर) और जंगम (सचर) समस्त जड़-चेतन जगत् में मुझे समझे, दयावान् रहे, सबसे प्रेम (सद्भाव) रखे, सत्य और संतोष में दृढ़ता पूर्वक चित्त को एकाग्र रखे, हे माता! उसे साधु कहना चाहिये। काम, क्रोध और लोभ को जिन्होंने छोड़ दिया है, (दुःख-सुख, सर्दी-गर्मी, राग-द्वेष आदि) द्वन्द्वों से जो रहित है, (प्रभावित नहीं होते) और (आसक्ति पूर्वक) कोई उद्योग नहीं करते- ऐसे लक्षण जिनमें हैं, हे माता! वे लोग साधु कहे जाते हैं। जिसको सदा काम और क्रोध प्रभावित करता रहता है और फिर लोभ जिसे सदा पीड़ा दिया करता है, उसे सब लोग असाधु कहते हैं। केवल साधु का वेश बना लेने से कोई साधु नहीं हो जाता। संत (सत्पुरुष) सदा श्री हरि का गुण गान करते हैं, जिसे सुन कर लोग भगवद्भक्ति प्राप्त करते हैं और भक्ति पा कर श्री हरि को लोक (भगवद्धाम) प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें हर्ष और शोक नहीं होते।’ |
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