सुर-बनिता सब कहतिं परस्पर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



सुर-बनिता सब कहतिं परस्पर, ब्रजवासी-दासी-समसरि को?
गोपी मगन भई सब गावति, हलरावति सुत लेति महरि कौ।
जो सुख मुनि जन ध्यान न पावत, सो सुख करत नंद सब खरिकौ।
मनि-मुकता-गन करत निछावरि, तुरतहिं देत बिलंब न धरि कौ।
सूर नंद ब्रज-जन पहिरावत, उमँगि चल्यौ सुखसिंधु लहरि कौ।।181।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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