सुन कर्कश वाणी दानवकी, हुए सभी नर-नारि उदास।
भडक़ उठा क्रोधानल सबके, तुरत बढ़ चला श्वासोच्छ्वास॥
सुनते ही दुर्वचन, अचेतन भी हो उठे तुरत विक्षुब्ध।
व्याप्त चेतनाने उनको भी ’देने दण्ड’ कर दिया क्रुद्ध॥
मटकी छींके टँगी गिरी आ दानवके सिर तुरत धड़ाम।
बेलन चला, आ घुसा मुखमें, बिगड़ गयी हुलिया बेकाम॥
सिलबट्टा झट उठा, धड़ाधड़ किया पीटना जो आरभ।
भगा महाबल चिल्लाता-रोता अति, लगा छिपाने दम्भ॥
खटिया खड़ी रोककर पथको, मूसलने उठ मारी मार।
पीठ पटा कर दी दानवकी, चीख उठा कर करुण पुकार॥
दम फूला, गिर पड़ा भूमिपर, पोथी-पत्रे फटे तमाम।
असत् जनेऊ टूटी, मिटे तिलक, हो गया शोक का धाम॥
पण्डितको यह मिली दक्षिणाकी जब देखी भारी पोट।
लोट-पोट हो हँसे नारि-बालक, बूढ़ोंने हँस ली ओट॥