सुनि सखि-बचन सकुचि -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग काफी - ताल दीपचंदी


सुनि सखि-बचन सकुचि हरि बोले-’री बृषभानु-दुलारी !
मैं तो प्रिये ! सदा कौ हार्‌यौ, न‌ई हार कहा हारी॥
चरन-रज हौं बलिहारी’॥
सुनि मृदु बचन, स्रमित लखि पिय कौं दुखित भर्ईं हिय भारी।
राधा आ‌इ उठा‌इ प्रान-धन सिंघासन बैठारी॥
करन लगी बसन बयारी॥
सुभग अंग सब पौंछि अरुन निज पट सौं राधा प्यारी।
सीतल जल मुख धो‌इ अलक निज कर सरुझा‌ई झारीं॥
मुदित भ‌इ लखि ब्रज-नारीं॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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