सुनि मोहन तेरी प्रान प्रिया कौ, बरनौ नंदकुमार।
जो तुम आदि अंत मेरौ गुन, मानहु यह उपकार।।
चंद्रमुखी, भौहै कलंक बिच, चंदन तिलक लिलार।
मनु बेनी भुवंगिनी परसत, स्रवत सुधा की धार।।
नैन मीन, सरबर आनन मै, चंचल करत बिहार।
मानौ कर्नफूल चारा को, रबकत बारबार।।
बेसरि बनी सुभग नासा पर, मुक्ता परम सुढार।
मनु तिल फूल, अधर बिंबाधर, दुहुँ बिच बूँद तुषार।।
सुनि सुठान ठोढी अति सुंदर, सुंदरता कौ सार।
चुवतहि चुवत सुधा रस मानौ, रहि गई बूँद मँझार।।
कंठसिरी उर पदिक बिराजत, गज मोतिनि के हार।
दहिनावर्त देति मनु ध्रुव कौ, मिलि नछत्र की मार।।
कुच जुग कुंभ सुडि रोमावलि, नाभि सु हृद आकार।
जनु जल सोखि लियौ सैसवता, जोबन गज मतवार।।
रत्नजटित गजरा, बाजू बँद, सोभा भुजनि अपार।
फूँदा सुभग फूल फूले मनु, मदन बिटप की डार।।
छीन लक नीबा किंकिनि धुनि, बाजति अति झनकार।
मौर बाँधि बैठ्यौ जनु दूलह मन्मथ आसन तार।।
जुगल जघ जेहरि जराव की, राजति परम उदार।
राजहंस गति चलति कृसोदरि, अति नितव कै भार।।
छिटकि रह्यौ लहँगा रँग तनसुख सारी तन सुकुमार।
'सूर' सु अंग सुगंध सनूहनि, भँवर करत गुंजार।।2610।।