सुकदेव कहत सुनौ राजा2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग
सतधन्वावध



सुनि जदुपति हलधर उठि धाए, नैकु बिलंब न लाई ।
लैहै बैर पिता तेरै कौ, जैहै कहाँ पराई ।।
तब मनि डारि अक्रूर पास वह, मिथिलापुर कौ धायौ ।
सत जोजन मग एक दिवस मैं, तुरत ताहि पहुँचायौ ।।
द्वारावति पैठत हरि सौ सब, लोगनि कह्यौ जनाई ।
मिथिलापुरी जाइ तिहि मारयौ, पै मनि उहाँ न पाई ।।
तब हरि कह्यौ हत्यौ बिन दूषन, हलधर भेद बतायौ ।
ह्वाँ पुनि जाइ खोज तुम कीजौ, द्वारावति हरि धायौ।
हलधर रहे गदा जुध सीखन, हरि द्वारावति आए ।
सतिभामा मन हरष भयौ जब, समाचार ये पाए ।।
सुफलकसुत मन ही मन सकुच्यौ, कहौ कहा अब काजा ।
देत न बनै बनै नहिं राखत, डर डरात उठि भाजा ।।
सब जादौ मिलि हरि सौ यह कह्यौ, सुफलकसुत जहँ होई ।
अनावृष्टि अति वृष्टि होति नहिं, यह जानत सब कोई ।।
कीजै दोष छमा अब ताकौ, हरि तब ताहि बुलायौ ।
कह्यौ कहा कहियै अब तुमसौ, तिन सिर नीचौ नायौ ।।
पुनि कह्यौ मनि सतिभामा कौ दै, जातै भय भयौ तोहिं ।
मनि उन दई बहुरि तिहिं दीन्हौ, कह्यौ लोभ नहिं मोहि ।।
लोभ भलौ नहिं दोऊपुर मैं, लोभ किऐ पति जाई ।
‘सूर’ लोभ कीन्हौ सो बिगोयौ, सुक यह कहि समुझाई ।। 4191 ।।

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