सुनाता मैं वैराग्य महत्व -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग भीमपलासी - ताल त्रिताल


सुनाता मैं वैराग्य महव।
लूटता अर्थ धर्म औ स्वत्व॥
बिचारे भूले, भोले जीव।
समझते मुझको संत सजीव॥
ठगीका आता कभी न अन्त।
बना रहता मैं पूरा संत॥
नीच मैं डरा नहीं क्षण एक।
मिटानी चाही प्रभुकी टेक॥
हु‌आ सब भाँति अन्त हैरान।
छुटानी कठिन हो गयी जान॥
चला तब मैं होकर अति खिन्न।
हु‌ई सब मेरी आशा छिन्न॥
नहीं मैं मुँह दिखलाने जोग।
मुझे अब भूल जायँ सब लोग॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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