- महाभारत वनपर्व के पतिव्रतामाहात्म्य पर्व के अंतर्गत अध्याय 294 में सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने के दृढ़ निश्चय का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
देवर्षि नारद एवं अश्वपति का संवाद
मार्कण्डेय जी कहते हैं- भरतनन्दन युधिष्ठिर! एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए देवर्षि नारदजी के साथ मिलकर बातें कर रहे थे। उसी समय सावित्री सब तीर्थों और आश्रमों में घूम फिरकर मन्त्रियां के साथ अपने पिता के घर आ पहुँची। वहाँ पिता को नारद जी के साथ बैठे हुए देखकर शुभलक्षण सावित्री ने दोनों के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया।
नारद जी ने पूछा- राजन! आपकी यह पुत्री कहाँ गयी थी और कहाँ से आ रही है , अब तो यह युवती हो गयी है। आप किसी वर के साथ इसका विवाह क्यों नहीं कर देते हैं ?
अश्वपति ने कहा- देवर्षे! इसे मैंने इसी कार्य से भेजा था और यह अभी-अभी लौटी है। इसने अपने लिये जिस पति का वरण किया है, उसका नाम इसी के मुख से सुनिये।
सावित्री का संवाद
माकैण्डेयजी कहते हैं- युधिष्ठिर! पिता के सह कहने पर कि ‘बेटी! तू अपनी यात्रा का वृत्तान्त विस्तार के साथ बताना’ शुभलक्ष्णा सावित्री उनकी आज्ञा मानकर उस समय इस प्रकार बोली।
सावित्री ने कहा- पिताजी! शल्वदेश में द्युमत्सेन नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा क्षत्रिय राजा राज्य करते थे। पीछे वे अंधे हो गये। यह अवसर पाकर उनके पूर्व शत्रु एक पड़ोसी राजा ने आक्रमण किया और उन बुद्धिमान नरेश का राज्य हर लिया। तब अपनी छोटी अवस्था के पुत्र वाली पत्नी के साथ वे वन में चले आये और विशाल वन के भीतर रहकर बड़े-बड़े व्रतों का पालन करते हुए तपस्या करने लगे। उनके एक पुत्र हैं सत्यवान, जो पैदा तो नगर में हुए हैं, परंतु उनका पालन-पोषण एवं संवर्धन तपोवन में हुआ है। वे ही मेरे योग्य पति हैं। उन्हीं का मैंने मन-ही-मन वरण कर लिया है। इस राजकुमार के पिता सदा सत्य बोलते हैं। इसकी माता भी सत्यभाषिण करती है। इसलिये ब्राह्मणों ने इसका नाम ‘सत्यवान’ रख दिया है। इस बालक को अश्व बहुत प्रिय हैं। यह मिट्टी के अश्व बनाया करता है और चित्र लिखते समय भी अश्वों को ही अंकित करता है, अतः इसे ‘चित्राश्व’ भी कहते हैं।
राजा ने पूछा- देवर्षे! इस समय पितृभक्त राजकूमार सत्यवान तेजस्वी, बुद्धिमान, क्षमावान और शूरवीर तो हैं न ?
नारद जी ने कहा- वह राजकुमार सूर्य के समान तेजस्वी? बुहस्पति के समान बुद्धिमान, इन्द्र के समान वीर और पृथ्वी के समान क्षमाशील है।
अश्वपति ने पूछा- क्या राजपुत्र सत्यवान दानी, ब्राह्मणभक्त, रूपवान, उदार अथवा प्रियदर्शन भी है ?
सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय
नारद जी ने कहा- सत्यवान अपनी शक्ति के अनुसार दान देने में संकृतिनन्दन रन्तिदेव के समान है तथा उशीनर पुत्र शिवि के समान ब्राह्मण भक्त और सत्यवादी है। वह ययाति की भाँति उदार और चन्द्रमा के समान प्रियदर्शन है। द्वुमत्सेन का वह बलवान पुत्र सत्यवान तो इताना है मानो अश्विनीकुमारों में से ही एक हो। वह जितेन्द्रिय, मृदुल, शूरवीर, सत्यस्वरूप, इन्द्रिय-संयमी, सबके प्रति मैत्रीभाच रखने वाला, अदोषदर्शी, लज्जवान और कान्तिमान है। तप और शील में बढ़े हुए वृद्ध पुरुष संक्षेप में उसके विषय में ऐसा कहते हैं कि राजकुमार सत्यवान में सरलता का नित्य निवास है और उस सद्गुण में उसकी अविचल स्थिति है।
अश्वपति बोले- भगवन! आप तो उसे सभी गुणों से सम्पन्न ही बता रहे हैं, यदि उसमें कोई दोष हों तो उन्हें भी बताइये।
नारद जी ने कहा- दोष तो एक ही है, जो उसके सभी गुणों को दबाकर स्थित है। उस दोष को प्रयत्न करके भी हटाया नहीं जा सकता। आज से लेकर एक वर्ष पूर्ण होने तक सत्यवान की आयु पूर्ण हो जायगी और वह शरीर त्याग देगा। केवल यही दोष उसमें है, दूसरा नहीं।
राजा बोले- बेटी सावित्री! यहाँ आ। शोभने! तू पुनः यात्रा का और दूसरे किसी पुरुष का वरण कर ले। सत्यवान् का यह एक ही बहुत बड़ा दोष है, जो उसके सभी गुणों को दबाकर स्थित है। जैसा कि देववन्दित भगवान नारदजी कह रहे हैं, सत्यवान् की आयु बहुत थोड़ी है और वह एक ही वर्ष में देहत्याग कर देगा।
सावित्री बोली- भाइयों में धन कर बँटवारा एक ही बार होता है, कन्या एक ही बार दी जाती है तथा श्रेष्ठ दाता ‘मैं दूँगा’, यह कहकर एक ही वचनदान करता है। ये तीन बातें एक-एक बार ही होती हैं। सत्यवान दीर्धायु हों या अल्पायु, गुणवान हों या गुणहीन; मैंने उन्हें एक बार अपना पति चुन लिया। अब मैं दूसरे किसी पुरुष का वरण नहीं कर सकती। पहले मन ने निश्चय करके फिर वाणी द्वारा कहा जाता है। तत्पश्चात उसे कार्यरूप में परिणत किया जाता है, अतः इस विषय में मेरा मन ही प्रमाण है।
नारद जी बोले- नरश्रेष्ठ! आपकी पुत्री सावित्री बुद्धि स्थिर है। इसे इस धर्म मार्ग से किसी तरह हटाया नहीं जा सकता। सत्यवान में जो गुण हैं, वे दूसरे किसी पुरुष में हैं भी नहीं। अतः मुझे आपकी पुत्री का सत्यवान के साथ विवाह कर देना ठीक मालूम पड़ता है।
राजा बोले- देवर्षे! आपने जो बात कही है, यह ठीक है। उसे टाला नहीं जा सकता। अतः मैं ऐसा ही करूँगा, क्योंकि आप मेरे गुरु हैं।
नारद जी ने कहा- राजन! आपकी पुत्री सावित्री के विवाह में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न आये। अच्छा, अब मैं चलता हूँ। आप सब लोगों का कल्याण हो।
मार्कण्डेय जी कहते हैं- युधिष्ठिर! ऐसा कहकर नारद जी उठे और स्वर्गलोक में चले गये। इधर राजा भी अपनी पुत्री क विवाह की तैयारी कराने लगे।[2]
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| घटोत्कच की सहायता से पांडवों का गंधमादन पर्वत तथा बदरिकाश्रम में प्रवेश
| बदरीवृक्ष, नरनारायणाश्रम तथा गंगा का वर्णन
| भीमसेन का सौगन्धिक कमल लाने के लिए जाना
| भीमसेन की कदलीवन में हनुमान से भेंट
| भीमसेन और हनुमान का संवाद
| हनुमान का भीमसेन से रामचरित्र का संक्षिप्त वर्णन
| हनुमान द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन
| हनुमान द्वारा भीमसेन को विशाल रूप का प्रदर्शन
| हनुमान द्वारा चारों वर्णों के धर्मों का प्रतिपादन
| भीमसेन को आश्वासन देकर हनुमान का अन्तर्धान होना
| भीमसेन का सौगन्धिक वन में पहुँचना
| क्रोधवश राक्षसों का भीमसेन से सामना
| भीमसेन द्वारा क्रोधवश राक्षसों की पराजय
| युधिष्ठिर आदि का सौगन्धिक वन में भीमसेन के पास पहुँचना
| पांडवों का पुन: नरनारायणाश्रम में लौटना
जटासुरवध पर्व
जटासुर द्वारा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल एवं सहदेव का हरण
| भीमसेन द्वारा जटासुर का वध
यक्षयुद्ध पर्व
पांडवों का नरनारायणाश्रम से वृषपर्वा के जाना
| पांडवों का राजर्षि आर्ष्टिषेण के आश्रम पर जाना
| आर्ष्टिषेण का युधिष्ठिर के प्रति उपदेश
| पांडवों का आर्ष्टिषेण के आश्रम पर निवास
| भीमसेन द्वारा मणिमान का वध
| कुबेर का गंधमादन पर्वत पर आगमन
| कुबेर की युधिष्ठिर से भेंट
| कुबेर का युधिष्ठिर आदि को उपदेश तथा सान्त्वना
| धौम्य द्वारा मेरु शिखरों पर स्थित ब्रह्मा-विष्णु आदि स्थानों का वर्णन
| धौम्य का युधिष्ठिर से सूर्य-चन्द्रमा की गति एवं प्रभाव का वर्णन
| पांडवों की अर्जुन के लिए उत्कंठा
निवातकवच युद्ध पर्व
अर्जुन का स्वर्गलोक से आगमन तथा भाईयों से मिलन
| इन्द्र का आगमन तथा युधिष्ठिर को सान्त्वना देना
| अर्जुन का अपनी तपस्या यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन
| अर्जुन द्वारा शिव से संग्राम एवं पाशुपतास्त्र प्राप्ति की कथा
| अर्जुन का युधिष्ठिर से स्वर्गलोक में प्राप्त अपनी अस्त्रविद्या का कथन
| अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्ध की तैयारी का कथन
| अर्जुन का पाताल में प्रवेश
| अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्धारम्भ
| अर्जुन और निवातकवचों का युद्ध
| अर्जुन के साथ निवातकवचों के मायामय युद्ध का वर्णन
| अर्जुन द्वारा निवातकवचों का वध
| अर्जुन द्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयों का वध
| इन्द्र द्वारा अर्जुन का अभिनन्दन
| युधिष्ठिर की अर्जुन से दिव्यास्त्र-दर्शन की इच्छा
| नारद आदि का अर्जुन को दिव्यास्त्र प्रदर्शन से रोकना
आजगरपर्व
भीमसेन की युधिष्ठिर से बातचीत
| पांडवों का गंधमादन से प्रस्थान
| पांडवों का बदरिकाश्रम में निवास
| पांडवों का सरस्वती-तटवर्ती द्वैतवन में प्रवेश
| द्वैतवन में भीमसेन का हिंसक पशुओं को मारना
| भीमसेन को अजगर द्वारा पकड़ा जाना
| भीमसेन और सर्परूपधारी नहुष का वार्तालाप
| युधिष्ठिर द्वारा भीम की खोज
| युधिष्ठिर का सर्परूपधारी नहुष के प्रश्नों का उत्तर देना
| सर्परूपधारी नहुष का भीमसेन को छोड़ना तथा सर्पयोनि से मुक्ति
मार्कण्डेयसमास्यापर्व
युधिष्ठिर आदि का पुन: द्वैतवन से काम्यकवन में प्रवेश
| पांडवों के पास कृष्ण, मार्कण्डेय तथा नारद का आगमन
| मार्कण्डेय का युधिष्ठिर से कर्मफल-भोग का विवेचन
| तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणों का माहात्म्य
| ब्राह्मण महिमा के विषय में अत्रिमुनि तथा राजा पृथु की प्रशंसा
| तार्क्ष्यमुनि और सरस्वती का संवाद
| वैवस्वत मनु का चरित्र और मत्स्यावतार कथा
| चारों युगों की वर्ष-संख्या तथा कलियुग के प्रभाव का वर्णन
| प्रलयकाल का दृश्य और मार्कण्डेय को बालमुकुन्द के दर्शन
| मार्कण्डेय का भगवान के उदर में प्रवेश और ब्रह्माण्डदर्शन
| मार्कण्डेय का भगवान बालमुकुन्द से वार्तालाप
| बालमुकुन्द का मार्कण्डेय को अपने स्वरूप का परिचय देना
| मार्कण्डेय द्वारा कृष्ण महिमा का प्रतिपादन
| युगान्तकालिक कलियुग समय के बर्ताव का वर्णन
| कल्कि अवतार का वर्णन
| भगवान कल्कि द्वारा सत्ययुग की स्थापना
| मार्कण्डेय का युधिष्ठिर के लिए धर्मोपदेश
| इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित का मण्डूकराज की कन्या से विवाह
| शल और दल के चरित्र तथा वामदेव मुनि की महत्ता
| इन्द्र और बक मुनि का संवाद
| सुहोत्र और शिबि की प्रशंसा
| ययाति द्वारा ब्राह्मण को सहस्र गौओं का दान
| सेदुक और वृषदर्भ का चरित्र
| इन्द्र और अग्नि द्वारा राजा शिबि की परीक्षा
| नारद द्वारा शिबि की महत्ता का प्रतिपादन
| इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियों की कथा
| मार्कण्डेय द्वारा विविध दानों का महत्त्व वर्णन
| मार्कण्डेय द्वारा विविध विषयों का वर्णन
| उत्तंक मुनि की कथा
| उत्तंक का बृहदश्व से धुन्धु वध का आग्रह
| ब्रह्मा की उत्पत्ति
| विष्णु द्वारा मधु-कैटभ का वध
| धुन्धु की तपस्या और ब्रह्मा से वर प्राप्ति
| कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध
| कुवलाश्व को देवताओं से वर की प्राप्ति
| पतिव्रता स्त्री और माता-पिता की सेवा का माहात्म्य
| कौशिक ब्राह्मण तथा पतिव्रता का उपाख्यान
| कौशिक का धर्मव्याध के पास जाना
| धर्मव्याध द्वारा वर्णधर्म का वर्णन और जनकराज्य की प्रशंसा
| धर्मव्याध द्वारा शिष्टाचार का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा हिंसा और अहिंसा का विवेचन
| धर्मव्याध द्वारा धर्म की सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति के उपायों का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा विषय सेवन से हानि, सत्संग से लाभ का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा ब्राह्मी विद्या का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा पंचमहाभूतों के गुणों का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा इन्द्रियनिग्रह का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा तीन गुणों के स्वरूप तथा फल का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा प्राणवायु की स्थिति का वर्णन
| धर्मव्याध द्वारा परमात्म-साक्षात्कार के उपाय
| धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का दिग्दर्शन
| धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का उपदेश
| धर्मव्याध का कौशिक ब्राह्मण से अपने पूर्वजन्म की कथा कहना
| धर्मव्याध-कौशिक संवाद का उपंसहार
| अग्नि का अंगिरा को अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना
| अंगिरा की संतति का वर्णन
| बृहस्पति की संतति का वर्णन
| पांचजन्य अग्नि की उत्पत्ति
| पांचजन्य अग्नि की संतति का वर्णन
| अग्निस्वरूप तप और भानु मनु की संतति का वर्णन
| सह अग्नि का जल में प्रवेश
| अथर्वा अंगिरा द्वारा सह अग्नि का पुन: प्राकट्य
| इन्द्र द्वारा केशी से देवसेना का उद्धार
| इन्द्र का देवसेना के साथ ब्रह्मा और ब्रह्मर्षियों के आश्रम पर जाना
| अद्भुत अग्नि का मोह और उनका वनगमन
| स्कन्द की उत्पत्ति
| स्कन्द द्वारा क्रौंच आदि पर्वतों का विदारण
| विश्वामित्र का स्कन्द के जातकर्मादि तेरह संस्कार करना
| अग्निदेव आदि द्वारा बालक स्कन्द की रक्षा करना
| इन्द्र तथा देवताओं को स्कन्द का अभयदान
| स्कन्द के पार्षदों का वर्णन
| स्कन्द का इन्द्र के साथ वार्तालाप
| स्कन्द का देवताओं के सेनापति पद पर अभिषेक
| स्कन्द का देवसेना के साथ विवाह
| कृत्तिकाओं को नक्षत्रमण्डल में स्थान की प्राप्ति
| मनुष्यों को कष्ट देने वाले विविध ग्रहों का वर्णन
| स्कन्द द्वारा स्वाहा देवी का सत्कार
| रुद्रदेव के साथ स्कन्द और देवताओं की भद्रवट यात्रा
| देवासुर संग्राम तथा महिषासुर वध
| कार्तिकेय के प्रसिद्ध नामों का वर्णन
द्रौपदीसत्यभामासंवाद पर्व
द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा
| द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को पतिसेवा की शिक्षा
| सत्यभामा का द्रौपदी को आश्वासन
घोषयात्रा पर्व
पांडवों का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र का खेद तथा चिंतापूर्ण उद्गार
| शकुनि और कर्ण द्वारा दुर्योधन को पांडवों के पास जाने के लिए उभाड़ना
| दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना
| दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति
| द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद
| कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय
| गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण
| कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश
| पांडवों का गंधर्वों के साथ युद्ध
| पांडवों द्वारा गंधर्वों की पराजय
| चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा
| दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन
| दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना
| दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश
| कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय
| दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना
| दैत्यों का दुर्योधन को समझाना
| दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान
| भीष्म का दुर्योधन को पांडवों से संधि करने का प्रस्ताव
| कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान
| कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय
| कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार
| दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी
| दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति
| कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा
| युधिष्ठिर की चिन्ता तथा दुर्योधन की शासननीति
मृगस्वप्नोद्भव पर्व
पांडवों का काम्यकवन में गमन
व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन
| व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन
| दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा
| महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना
| देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन
| व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार
| दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना
| द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना
| कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना
| जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना
| कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना
| द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर
| जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद
| जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण
| पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना
| द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन
| पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार
| युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना
| भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना
| शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना
| राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन
| रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति
| कुबेर का रावण को शाप देना
| देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना
| राम के राज्याभिषेक की तैयारी
| राम का वन को प्रस्थान
| भरत की चित्रकूट यात्रा
| राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप
| राम द्वारा मारीच का वध
| रावण द्वारा सीता का अपहरण
| रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार
| राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध
| राम और सुग्रीव की मित्रता
| राम द्वारा बाली का वध
| अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन
| रावण और सीता का संवाद
| राम का सुग्रीव पर कोप
| सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना
| हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना
| वानर सेना का संगठन
| नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण
| विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश
| अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना
| राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम
| राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध
| प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध
| रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना
| कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध
| इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा
| राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना
| लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध
| रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना
| राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध
| राम का सीता के प्रति संदेह
| देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन
| राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक
| मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति
| सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण
| सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय
| सावित्री और सत्यवान का विवाह
| सावित्री की व्रतचर्या
| सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना
| सावित्री और यम का संवाद
| यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना
| सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप
| राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता
| सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन
| द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना
| कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना
| सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश
| कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय
| कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन
| कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना
| कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या
| कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश
| कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन
| कुन्ती-सूर्य संवाद
| सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन
| कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप
| अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति
| कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन
| कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति
| इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग
| युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश
| नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना
| यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद
| यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर
| युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना
| यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना
| युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना
| भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श
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