कृष्णदास कविराज बांग्ला भाषा के वैष्णव कवि थे। पश्चिम बंगाल में उनका वही स्थान है, जो उत्तर भारत में तुलसीदास का। इनका जन्म बर्द्धमान ज़िले के झामटपुर नामक ग्राम में एक कायस्थ कुल में हुआ था। नवद्वीप में चैतन्य महाप्रभु ने प्रेम की जो महान सरिता बहायी, उसी दिव्य प्रेमसलिला में अपने को निमज्जित कर उसमें अपने को सर्वथा डुबा देने तथा उसी में लय हो जाने के लिये उस समय अनेकों महापुरुषों ने जन्म ग्रहण किया। इन्हीं परम सौभाग्य सम्पन्न प्रेमी महापुरुषों में एक थे- बँगला ‘चैतन्य-चरितामृत’ के रचयिता प्रसिद्ध वैष्णव कवि भक्तराज श्री कृष्णदास जी। इन्होंने बालकपन में ही संस्कृत भाषा पढ़ी एवं उसमें धुरन्धर विद्वान बन गये। ये शैशव से ही अत्यन्त धर्मानुरागी थे। इनके माता-पिता श्री चैतन्य महाप्रभु के भक्त थे एवं ये भी बालकपन से ही श्री चैतन्य के गुणों को सुन चैतन्य भक्त बन गये थे। ज्यों-ज्यों इनकी उम्र बढ़ी, इनका भक्तिभाव एवं विषय-वैराग्य भी बढ़ता गया। रात-दिन ये श्रीकृष्ण नाम जप में ही व्यतीत करते। ...और पढ़ें