सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
पंद्रहवाँ अध्याय(पुरुषोत्तम योग)जो साधक परमात्मा के शरण हो जाते हैं, वे शरीर के मान-आदर और मोह से रहित हो जाते हैं, आसक्ति न रहने के कारण वे आसक्ति से पैदा होने वाले ममता आदि दोषों को जीत लेते हैं, वे नित्य-निरंतर परमात्मा में ही स्थित रहते हैं, वे संपूर्ण कामनाओं से रहित हो जाते हैं, वे सुख-दुख रूप द्वंद्वों से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे ऊँची स्थिति वाले मोह रहित साधक भक्त अविनाशी परमपद परमात्मा को प्राप्त हो जाते हैं। उस परमपद को न सूर्य, न चंद्र और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है। कारण कि वे सूर्य, चंद्र, अग्नि आदि भी उस परमपद से ही प्रकाश पाकर भौतिक जगत् को प्रकाशित करते हैं। जहाँ जाने के बाद जीव लौटकर संसार में नहीं आता, वह अविनाशी पद ही मेरा परमधाम है।
|
संबंधित लेख
अध्याय | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज