सहज गीता -रामसुखदास पृ. 79

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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चौदहवाँ अध्याय

(गुणत्रयविभाग योग)

(गुणातीत मनुष्य के आचरण-) उसके आचरण समतापूर्वक होते हैं। अतः जो धैर्यवान् मनुष्य सुख-दुख में सम रहता है अर्थात् सुखी-दुखी नहीं होता, जो नित्य निरंतर रहने वाले स्वरूप में स्थित रहता है, जिसका मिट्टी के ढेले, पत्थर तथा सोने में न तो राग होता है और न द्वेष ही होता है, जो कर्मों की सिद्धि-असिद्धि में सम रहता है, जो नाम की निन्दा-स्तुति और शरीर के मान-अपमान में सुखी-दुखी नहीं होता, जो मित्र और शत्रु के पक्ष में सम रहता है, और जो कामना आसक्ति को लेकर कोई नया कर्म आरंभ नहीं करता, वह गुणातीत कहलाता है।
(गुणातीत होने का उपाय-) जो मनुष्य अनन्यभाव से केवल मेरे ही शरण हो जाता है, वह तीनों गुणों से अतीत होकर ब्रह्मप्राप्ति का अधिकारी हो जाता है। कारण कि ब्रह्म, अविनाशी अमृत, सनातनधर्म और एकान्तिक सुख का आधार मैं ही हूँ अर्थात् इन् रूपों में साक्षात् मैं ही हूँ।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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