सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
चौदहवाँ अध्याय(गुणत्रयविभाग योग)(गुणातीत मनुष्य के आचरण-) उसके आचरण समतापूर्वक होते हैं। अतः जो धैर्यवान् मनुष्य सुख-दुख में सम रहता है अर्थात् सुखी-दुखी नहीं होता, जो नित्य निरंतर रहने वाले स्वरूप में स्थित रहता है, जिसका मिट्टी के ढेले, पत्थर तथा सोने में न तो राग होता है और न द्वेष ही होता है, जो कर्मों की सिद्धि-असिद्धि में सम रहता है, जो नाम की निन्दा-स्तुति और शरीर के मान-अपमान में सुखी-दुखी नहीं होता, जो मित्र और शत्रु के पक्ष में सम रहता है, और जो कामना आसक्ति को लेकर कोई नया कर्म आरंभ नहीं करता, वह गुणातीत कहलाता है।
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