सहज गीता -रामसुखदास पृ. 77

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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चौदहवाँ अध्याय

(गुणत्रयविभाग योग)

हे भारत! सत्त्वगुण सुख में आसक्ति पैदा करके और रजोगुण कर्म में आसक्ति पैदा करके मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है, उसे अपने वश में करता है। परंतु तमोगुण विवेक को ढककर तथा प्रमाद में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है। हे भारत! रजोगुण और तमोगुण की वृत्तियों को दबाकर ‘रजोगुण’ बढ़ता है। इसी तरह सत्त्वगुण और रजोगुण की वृत्तियों को दबाकर ‘तमोगुण’ बढ़ता है। तात्पर्य है कि दो गुणों को दबाकर एक गुण बढ़ता है, बढ़ा हुआ गुण मनुष्य पर अधिकार जमाता है और अधिकार जमाकर मनुष्य को बाँध देता है।
जिस समय ‘सत्त्वगुण’ बढ़ता है, उस समय मनुष्य की संपूर्ण इंद्रियों तथा अंतःकरण में निद्रा आलस्य प्रमाद मिटकर स्वच्छता आ जाती है और विवेक प्रकट हो जाता है। जिस समय ‘रजोगुण’ बढ़ता है, उस समय लोभ, रागपूर्वक कर्म करने की प्रवृत्ति, भोग तथा संग्रह के उद्देश्य से नये-नये कर्मों को आरंभ करना, अंतःकरण में अशान्ति, इच्छा आदि वृत्तियाँ पैदा होती हैं। जिस समय ‘तमोगुण’ बढ़ता है, उस समय इन्द्रियों तथा अंतःकरण में स्वच्छता नहीं रहती, किसी कार्य को करने का मन नहीं करता, प्रमाद होने लगता है और अंतःकरण में मोह छा जाता है।
‘सत्त्वगुण’ के बढ़ाने पर मरने वाला मनुष्य पुण्यात्माओं द्वारा प्राप्त करने योग्य उत्तम लोकों में जाता है। ‘रजोगुण’ के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्य पुनः मनुष्ययोनि में ही जन्म लेता है। ‘तमोगुण’ के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्य पशु, पक्षी, कीट, पतंग, वृक्ष, लता आदि नीच योनियों में जन्म लेता है। कारण कि सात्त्विक कर्म का फल निर्मल, राजस कर्म का फल दुःख और तामस कर्म का फल मूढ़ता (विवेकहीनता) होता है। सत्त्वगुण से ज्ञान (विवेक), रजोगुण से लोभ और तमोगुण से प्रमाद, मोह तथा अज्ञान उत्पन्न होते हैं। जिन मनुष्यों के जीवन में ‘सत्त्वगुण’ की प्रधानता होती है, वे शरीर छूटने पर स्वर्गादि ऊँचे लोकों में जाते हैं। जिन मनुष्यों के जीवन में ‘रजोगुण’ की प्रधानता होती है, वे शरीर छूटने पर पुनः मनुष्यलोक में ही जन्म लेते हैं। जिन मनुष्यों के जीवन में ‘तमोगुण’ की प्रधानता होती है, वे शरीर छूटने पर अधोगति में (नरकों में तथा पशु-पक्षी आदि नीच योनियों में) जाते हैं।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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