सहज गीता -रामसुखदास पृ. 63

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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ग्यारहवाँ अध्याय

(विश्वरुपदर्शन योग)

(भगवान् के अत्यंत उग्ररूप का दर्शन और वर्णन-) हे महाबाहो! आपके बहुत से मुखों, नेत्रों, भुजाओं, जंघाओं, चरणों, उदरों तथा भयंकर दाढ़ों वाले महान् उग्र रूप को देखकर सब प्राणी भयभीत हो रहे हैं तथा मैं स्वयं भी भयभीत हो रहा हूँ। वे विष्णो! आपके देदीप्यमान वर्णों वाले, आकाश को छूने वाले, फैलाय हुए मुखवाले और देदीप्यमान विशाल नेत्रों वाले भयंकर रूप को देखकर मैं भीतर से बहुत भयभीत हो रहा हूँ और मुझे धैर्य तथा शान्ति भी नहीं मिल रही है। आपके प्रलय की अग्नि के समान प्रज्वलित और दाढ़ों के कारण भयानक मुखों को देखकर मुझे न तो दिशाओं का ज्ञान हो रहा है और न शान्ति ही मिल रही है। इसलिए हे देवेश! हे जगन्निवास! आप प्रसन्न होइये। हमारे पक्ष के मुख्य-मुख्य योद्धाओं के सहित भीष्म, द्रोण और कर्ण भी आपमें प्रवेश कर रहे हैं।
राजाओं के समुदायों के सहित धृतराष्ट्र के वे सब के सब पुत्र आपके विकराल दाढ़ों वाले भयंकर मुखों में बड़ी तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। उनमें से कई-एक तो चूर्ण हुए सिरोंसहित आपके दाँतों के बीच में फँसे हुए दीख रहे हैं। जैसे नदियों के बहुत से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र की तरफ दौड़ते हैं, ऐसे ही संसार के वे (धर्म की दृष्टि से युद्ध करने वाले भीष्म, द्रोण आदि) महान् शूरवीर आपके देदीप्यमान मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। जैसे पतंगे मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश करते हैं, ऐसे ही ये (राज्य-लोभ की दृष्टि से युद्ध करने वाले दुर्योधन आदि) सब लोग मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़े वेग से दौड़ते हुए आपके मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। आप अपने प्रज्वलित मुखों के द्वारा संपूर्ण लोकों का भक्षण करते हुए उन्हें सब तरफ से बार-बार चाट रहे हैं। हे विष्णो! आपका उग्र प्रकाश अपने तेज से संपूर्ण जगत् को परिपूर्ण करके सबको तपा रहा है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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