सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय(विश्वरुपदर्शन योग)(भगवान् के अत्यंत उग्ररूप का दर्शन और वर्णन-) हे महाबाहो! आपके बहुत से मुखों, नेत्रों, भुजाओं, जंघाओं, चरणों, उदरों तथा भयंकर दाढ़ों वाले महान् उग्र रूप को देखकर सब प्राणी भयभीत हो रहे हैं तथा मैं स्वयं भी भयभीत हो रहा हूँ। वे विष्णो! आपके देदीप्यमान वर्णों वाले, आकाश को छूने वाले, फैलाय हुए मुखवाले और देदीप्यमान विशाल नेत्रों वाले भयंकर रूप को देखकर मैं भीतर से बहुत भयभीत हो रहा हूँ और मुझे धैर्य तथा शान्ति भी नहीं मिल रही है। आपके प्रलय की अग्नि के समान प्रज्वलित और दाढ़ों के कारण भयानक मुखों को देखकर मुझे न तो दिशाओं का ज्ञान हो रहा है और न शान्ति ही मिल रही है। इसलिए हे देवेश! हे जगन्निवास! आप प्रसन्न होइये। हमारे पक्ष के मुख्य-मुख्य योद्धाओं के सहित भीष्म, द्रोण और कर्ण भी आपमें प्रवेश कर रहे हैं। |
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