सहज गीता -रामसुखदास पृ. 59

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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दसवाँ अध्याय

(विभूति योग)

[भगवान् ने यहाँ अपनी बयासी विभूतियों का वर्णन किया है। इन सब विभूतियों में जो भी विशेषता, विलक्षणता, महत्ता, मुख्यता दीखती है, वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है, प्रत्युत भगवान् की ही है और भगवान् से ही आयी है। अतः संसार में जहाँ-जहाँ विशेषता दिखायी दे, वहाँ-वहाँ वस्तु, व्यक्ति आदि की विशेषता न देखकर भगवान् की ही विशेषता देखनी चाहिए और भगवान् की ही तरफ वृत्ति जानी चाहिए। वास्तव में विभूति-वर्णन का तात्पर्य संसार की सत्ता, महत्ता तथा प्रियता को हटाकर मनुष्य को 'वासुदेवः सर्वम्' का अनुभव कराना है, जो गीता का खास ध्येय है।]
हे परन्तप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है। मैंने तुम्हारे सामने अपनी विभूतियों का जो विस्तार कहा है, यह तो केवल संक्षेप से नाममात्र कहा है। संसारमात्र में जिस-किसी प्राणी-पदार्थ में जो कुछ भी ऐश्वर्य दीखे, शोभा या सौंदर्य दीखे, बल दीखे, उन सबको मेरे ही तेज (योग अर्थात् सामर्थ्य)- के किसी एक अंश से उत्पन्न हुई समझो। जब मैं अपने किसी एक अंश में संपूर्ण जगत् (अनन्त ब्रह्माण्डों) को व्याप्त करके साक्षात् तुम्हारे सामने बैठा हूँ, फिर तुम्हें इस प्रकार की बहुत सी बातें जानने की क्या जरूरत है?

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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