सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
नौवाँ अध्याय(राज विद्याराज गुह्य योग)[कैसा ही जन्म हो, कैसी ही जाति हो और पूर्वजन्म के कितने ही पाप हों, पर भगवान् की भक्ति के मनुष्यमात्र अधिकारी हैं। दुराचारी, पापयोनि, स्त्रियाँ, वैश्य, शूद्र, ब्राह्मण और क्षत्रिय- ये सातों भक्ति में एक हो जाते हैं, इनमें कोई भेद नहीं रहता। जैसे माँ की गोद में जाने के लिए किसी भी बच्चे के लिए मनाही नहीं है; क्योंकि वे बच्चे माँ के ही हैं। ऐसे ही भगवान् का अंश होने से प्राणिमात्र के लिए भगवान् की तरफ चलने में (भगवान की ओर से) कोई मनाही नहीं है। इसलिए भगवान् की तरफ चलने में किसी को कभी किंचिन्मात्र भी निराश नहीं होना चाहिए।] |
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