सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
पहला अध्याय(अर्जुन विषाद योग)और बुद्धि तामसी हो जाती है, तब कुल की स्त्रियाँ व्यभिचारिणी हो जाती हैं। व्यभिचार के कारण उनसे वर्णसंकर[1] संतानें पैदा होती है। वर्णसंकर संतान में धार्मिक बुद्धि नहीं होती। वह कुल का नाश करने वालों को तथा पूरे कुल को भी नरकों में ले जाने वाला होता है। अपने पूर्वजों के प्रति आदर बुद्धि न होने से उसके द्वारा पितरों को पिण्ड पानी भी नहीं मिलता, जिससे उनका अपने स्थान से पतन हो जाता है। इस तरह वर्णसंकर पैदा करने वाले दोषों से कुलघातियों के वर्णधर्म नष्ट हो जाते हैं। हे जनार्दन! जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, उनको बहुत समय तक नरकों का कष्ट भोगना पड़ता है। यह बड़े आश्चर्य की तथा दुख की बात है कि धर्म-अधर्म को, पाप-पुण्य को जानने वाले होने पर भी हमलोग अनजान आदमी की तरह राज्य और सुख के लोभ से बड़ा भारी पाप करने का विचार कर बैठे हैं। यह हमारे लिए सर्वथा अनुचित है। |
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- ↑ परस्पर विरुद्ध धर्मों का मिश्रण होकर जो बनता है, उसे ‘संकर’ कहते हैं। पुरुष और स्त्री- दोनों अलग-अलग वर्ण के होने पर उनसे जो संतान पैदा होती है, वह ‘वर्णसंकर’ कहलाती है।
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