सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय(ज्ञान कर्म संन्यास योग)कर्म योग से सिद्ध हुए महापुरुष के द्वारा जो भी कर्म होते हैं, वे सब संकल्प और कामना से रहित होते हैं। कर्मों का संबंध शरीर-संसार के साथ है, स्वरूप के साथ नहीं- इस ज्ञानरूपी अग्नि से उसके संपूर्ण कर्म भस्म हो जाते हैं अर्थात् उन कर्मों में फल देने (बाँधने)-की शक्ति नहीं रहती। ऐसे महापुरुष को ज्ञानीलोग भी बुद्धिमान कहते हैं। तात्पर्य है कि वह कर्मयोगी ज्ञानियों का भी ज्ञानी है। जो कर्म तथा उसके फल में आसक्ति का त्याग कर देता है; जो किसी भी वस्तु, व्यक्ति आदि का आश्रय नहीं लेता; और मन में कोई भी इच्छा न रहने से सदा तृप्त रहता है, वह भलीभाँति सब कर्म करते हुए भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता। उसके सब कर्म अकर्म हो जाते हैं।
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