सहज गीता -रामसुखदास पृ. 24

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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चौथा अध्याय

(ज्ञान कर्म संन्यास योग)

सृष्टि रचना के समय मैं ही जीवों के गुणों और कर्मों के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र- इन चार वर्णों की रचना करता हूँ। पर इन सृष्टि रचना आदि संपूर्ण कर्मों का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तुम अकर्ता ही समझो। कारण कि मेरी कर्मों के फल में स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म बाँधते नहीं। ‘कर्तापन और फलेच्छा न होने पर भी भगवान् केवल कृपा करके जीवों को कर्म-बंधन से रहित करके उनका कल्याण करने के लिए ही सृष्टि-रचना आदि कार्य करते हैं’- इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्तापन और फलेच्छा का त्याग करके कर्म करता है, जिससे वह कर्मों से नहीं बँधता। अपनी मुक्ति चाहने वाले जो साधक पहले हो चुके हैं, उन्होंने भी इस प्रकार कर्तापन और फलेच्छा का त्याग करके अपने-अपने कर्तव्य कर्मों का पालन किया है और मोक्ष प्राप्त किया है। इसलिए तुम्हें भी उनकी ही तरह अपने कर्तव्य कर्म का पालन करना चाहिए।
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इन दोनों का तत्त्व जानने में बड़े-बड़े विद्वानों की बुद्धि भी चकरा जाती है। इसलिए मैं इन दोनों का तत्त्व तुम्हें बताऊँगा, जिसको जानकर तुम कर्म करते हुए भी जन्म-मरण से मुक्त हो जाओगे। कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना ‘कर्म’ के तत्त्व को जानना है। निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना ‘अकर्म’ के तत्त्व को जानना है। शास्त्रनिषिद्ध कर्म और उसका कारण कामना इन दोनों का त्याग करना ‘विकर्म’ (पापकर्म) के तत्त्व को जानना है। इस प्रकार कर्म, अकर्म और विकर्म- इन तीनों को ही तत्त्व जानना चाहिए। इन तीनों के तत्त्व को जानने में बड़े-बड़े विद्वान भी अपने आपको असमर्थ पाते हैं; क्योंकि कर्मों की गति (ज्ञान या तत्त्व) बड़ी गहन है। परंतु जो मनुष्य ‘कर्म में अकर्म’ देखता है अर्थात् कर्म करते हुए अथवा न करते हुए भी निर्लिप्त रहता है और जो मनुष्य ‘अकर्म में कर्म’ देखता है अर्थात् निर्लिप्त रहते हुए ही कर्म करता है अथवा नहीं करता, वही वास्तव में संपूर्ण मनुष्यों में बुद्धिमान है, वही वास्तव में योगी है और वही वास्तव में संपूर्ण कर्मों को करने वाला (कृतकृत्य) है। उस कर्मयोगी के लिए कुछ भी करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहता।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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