सहज गीता -रामसुखदास पृ. 2

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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पहला अध्याय

(अर्जुन विषाद योग)

धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा- हे संजय! राजा कुरु की तपस्याभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों (कौरवों और पाण्डवों) ने किस प्रकार युद्ध किया, इसे विस्तार से मुझे सुनाओ। संजय बोले- जब दुर्योधन ने वज्रव्यूह- रचना से खड़ी हुई पाण्डवों की सेना को देखा तो वह भयभीत हो गया और द्रोणाचार्य के पास जाकर उन्हें पाण्डवों के विरुद्ध उकसाते हुए बोला कि ‘महाराज, देखिये, जो आपको मारने के लिए ही पैदा हुआ है, वही धृष्टद्युम्न पाण्डवों का सेनापति बनकर आपके सामने खड़ा है! इसलिए आप बड़ी सावधानी से युद्ध करें। धृष्टद्युम्न के सिवाय और भी बहुत से योद्धा पाण्डव सेना में खड़े हैं; जैसे- युयुधान (सात्यकि), विराट, द्रुपद, धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज, शैब्य, युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र (प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन)। ये सभी योद्धा महारथी[1] हैं।’
इसके बाद दुर्योधन बोला कि पाण्डव- सेना की तरह हमारी सेना में भी बहुत से महारथी हैं; जैसे- आप, पितामह भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण, भूरिश्रवा आदि। इनके सिवाय भी मेरे लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले अनेक शूरवीर हमारी सेना में आये हैं। परंतु दुर्योधन चालाकी से भरी हुई बातें सुनकर द्रोणाचार्य चुप रहे, कुछ बोले नहीं।
द्रोणाचार्य को चुप देखकर दुर्योधन के मन में विचार आया कि मैं भले ही बाहर से अपनी सेना की प्रशंसा करूँ, पर वास्तव में हमारी सेना पाण्डवों पर विजय करने में असमर्थ है, जबकि पाण्डव सेना हमारी सेना पर विजय करने में समर्थ है। [कारण यह था कि कौरव सेना के मुख्य संरक्षक पितामह भीष्म के भीतर कौरव और पाण्डव दोनों का पक्ष था अर्थात् वे दोनों का भला चाहते थे, जबकि पाण्डवों के संरक्षक भीम के भीतर केवल पाण्डवों का ही पक्ष था।] मन में ऐसा विचार आने के बाद दुर्योधन बाहर से पितामह भीष्म को प्रसन्न करने के लिए अपनी सेना के सभी महारथियों से बोला कि ‘आप सब के सब लोग पितामह भीष्म की चारों तरफ से रक्षा करें और इस बात को ध्यान में रखें कि किसी भी तरफ से शिखण्डी[2] उनके सामने न आ जाय’। [कारण कि दुर्योधन के भीतर यह विश्वास था कि पितामह भीष्म इच्छामृत्यु हैं, इसलिए वे पाण्डवों के लिए अजेय हैं। अगर उन्हें किसी से खतरा है तो केवल शिखण्डी से ही खतरा है।]

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104
  1. जो शस्त्र और शास्त्र में प्रवीण है तथा युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुष को ‘महारथी’ कहते हैं।
  2. शिखण्डी पहले जन्म में भी स्त्री था और इस जन्म में भी पहले स्त्री था, पीछे पुरुष बना था। इसलिए भीष्म जी उसे स्त्री ही समझते थे और उन्होंने उससे युद्ध ने करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। शिखण्डी शंकर के वरदान से भीष्म जी को मारने के लिए पैदा हुआ था।

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