सहज गीता -रामसुखदास पृ. 105

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

Prev.png

गीता सार

पाँचवें अध्याय का सार

मनुष्य को अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर सुखी-दुखी नहीं होना चाहिए; क्योंकि इनसे सुखी-दुखी होने वाला मनुष्य संसार से ऊँचा उठकर परम आनन्द का अनुभव नहीं कर सकता।

छठे अध्याय का सार

किसी भी साधन से अंतःकरण में समता आनी चाहिए। समता आये बिना मनुष्य सर्वथा निर्विकल्प नहीं हो सकता।

सातवें अध्याय का सार

सब कुछ भगवान् ही हैं- ऐसा स्वीकार कर लेना सर्वश्रेष्ठ साधन हैं।

आठवें अध्याय का सार

अंतकालीन चिन्तन के अनुसार ही जीव की गति होती है। अतः मनुष्य को हर दम भगवान् का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जिससे अंतकाल में भगवान् स्मृति बनी रहे।


Next.png

संबंधित लेख

सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः