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सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
गीता सारपाँचवें अध्याय का सारमनुष्य को अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर सुखी-दुखी नहीं होना चाहिए; क्योंकि इनसे सुखी-दुखी होने वाला मनुष्य संसार से ऊँचा उठकर परम आनन्द का अनुभव नहीं कर सकता। छठे अध्याय का सारकिसी भी साधन से अंतःकरण में समता आनी चाहिए। समता आये बिना मनुष्य सर्वथा निर्विकल्प नहीं हो सकता। सातवें अध्याय का सारसब कुछ भगवान् ही हैं- ऐसा स्वीकार कर लेना सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। आठवें अध्याय का सारअंतकालीन चिन्तन के अनुसार ही जीव की गति होती है। अतः मनुष्य को हर दम भगवान् का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जिससे अंतकाल में भगवान् स्मृति बनी रहे।
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