सहज गीता -रामसुखदास पृ. 101

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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अठारहवाँ अध्याय

(मोक्ष संन्यास योग)

यदि तुम अहंकार के कारण मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारा पतन हो जाएगा। तुमने अहंकार का आश्रय लेकर 'मैं युद्ध नहीं करूँगा'- इस प्रकार युद्ध न करने का जो निश्चय किया है, वह झूठा है; क्योंकि तुम्हारा क्षात्र-स्वभाव तुम्हें जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा। हे कुन्तीनन्दन! अपने स्वाभाविक कर्म से बँधे हुए तुम मोह के कारण जिस युद्ध को नहीं करना चाहते, उसे भी तुम क्षात्र स्वभाव के परवश होकर करोगे। हे अर्जुन! ईश्वर संपूर्ण प्राणियों के हृदय में रहता है। जो प्राणी शरीर को 'मैं' और 'मेरा' मानते हैं, उन संपूर्ण प्राणियों को वह ईश्वर अपनी मायाशक्ति से (उनके अच्छे या बुरे स्वभाव के अनुसार) संसार में घुमाता है। हे भारत! तुम सर्वभाव से (अपनी कोई कामना न रखकर) उस ईश्वर की ही शरण में चले जाओ। उसकी कृपा से तुम्हें परम शान्ति (संसार से सर्वथा उपरति) और अविनाशी परमपद- दोनं की प्राप्ति हो जायगी। यह गोपनीय से गोपनीय शरणागति रूप ज्ञान मैंने तुमसे कहा है। अब तुम इस पर अच्छी तरह से विचार करके फिर जैसी इच्छा हो, वैसा करो।
हे पार्थ! सबसे अत्यंत गोपनीय सर्वोत्कृष्ट वचन तुम फिर मुझसे सुनो। तुम मेरे अत्यंत प्रिय सखा हो, इसलिए मैं तुम्हारे विशेष हित की बात कहूँगा। तुम मेरे भक्त हो जाओ अर्थात् 'मैं भगवान् का ही हूँ'- इस प्रकार अपनी अहंता बदल दो; मुझमें मनवाले हो जाओ अर्थात् मुझे अपना मान लो;
अपने सब कर्मों से मेरा पूजन करो; और जो मुझे नमस्कार करो अर्थात् सर्वथा मेरे समर्पित हो जाओ। इस प्रकार सर्वथा मेरे सम्मुख होने पर तुम मुझे ही प्राप्त हो जाओगे- यह मैं तुम्हारे सामने सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ; क्योंकि तुम मेरे अत्यंत प्रिय हो। संपूर्ण धर्म का आश्रय, उनके निर्णय का विचार छोड़कर तुम केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम चिंता मत करो।
[यह शरणागति संपूर्ण गीता का सार है, जिसे भगवान् ने विशेष कृपा करके कहा है। इस शरणागति में ही गीता के उपदेश की पूर्णता होती है। शरणागत भक्त 'मैं भगवान् का हूँ और भगवान् मेरे हैं'- इस भाव को दृढ़ता से स्वीकार कर लेता है तो उसके भय, शोक, चिन्ता आदि दोषों की जड़ कट जाती है।]


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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