श्रीकृष्णांक
सर्वगुणाधार श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण जैसा सर्वगुण सम्पन्न महापुरुष भारत क्या सारे संसार में नहीं हुआ है। उनका कार्यकलाप इसका प्रमाण है। यदि वह अवतार न होते तो इतने गुणों का एक स्थान में समावेश न होता। श्रीकृष्ण जैसे साहसी वीर थे, वैसे ही संगीत के पारदर्शी। एक ओर गीता का ज्ञान तो दूसरी ओर वंशी की तान, जिससे मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी भी मोहित हो गये। वह जैसे राजनीतिज्ञ थे, वैसे ही धर्मानुरागी भी। श्यामवर्ण होने पर भी सौन्दर्य की खान थे। इसी से उनका दूसरा नाम श्यामसुन्दर भी है। दीन दुखियों पर दया करते, पर दुष्टों के दमन में देर भी नहीं करते थे। रास-क्रीडा के प्रेमी होकर भी योगेश्वरेश्वर थे। सारांश यह कि वह सर्वगुणाधर थे। उनका सतत ध्यान करने से मनुष्य का कल्याण होता है। उन्हें भूल जाने से ही हमारी यह दुर्गति है। बंकिम बाबू अपने कृष्ण चरित्र में लिखते है- बचपन में श्रीकृष्ण आदर्श बलवान थे। उस समय उन्होंने केवल शारीरिक बल से ही हिंसक जन्तुओं से वृन्दावन की रक्षा की थी। कंस और कंस के मल्लादिको को भी मार गिराया था। गौ चराने के समय ग्वालबालों के साथ खेलकूद और कसरत कर उन्होंने अपने शारीरिक बल की वृद्धि कर ली थीं। दौड़ने में कालयवन भी उन्हें न पा सका। कुरुक्षेत्र युद्ध में उनके रथ हाँकने की भी बडी प्रशंसा है। शस्त्रास्त्र-शिक्षा मिलने पर वह समाज में सर्वश्रेष्ठ वीर समझे जाने लगे। उन्हें कभी कोई परास्त न कर सका। कंस जरासन्ध, शिशुपाल प्रभति तत्कालीन प्रधान योद्धाओं से तथा काशी कलिंग पौण्ड्रक गान्धारादि के राजाओं से वह लड़ गये और सबको उन्होंने परास्त किया। उन्हें कभी कोई न जीत सका। सात्यकि और अभिमन्यु उनके शिष्य थे। वह दोनों भी सहज ही हराने वाले न थे। स्वयं अर्जुन ने भी उनसे युद्ध की बारीकियाँ सीखी थीं। श्रीकृष्ण योद्धा ही नहीं, अच्छे सेनापति भी थे। सेनापतित्व ही योद्धा का वास्तविक गुण है। उन्होंने मुठ्टीभर यादव सेना लेकर जरासन्ध की अगणित सेना को मथुरा से मार भगाया था। अपनी थोड़ी सी सेना से जरासन्ध का सामान करना असाध्य समझकर मथुरा छोड़ना नया नगर बसाने के लिये द्वारका द्वीप को चुनना और उसके सामने की रैवतक पर्वत माला में द्वुभेंध दुर्ग बनाना जिस रणनीतिज्ञता का परिचायक है। वह पुराणेतिहास के और किसी क्षत्रिय में नहीं देखी जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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