- महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 43वें अध्याय में सरस्वती नदी के जल की शुद्धि का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! शाप मुक्त हुई सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती पहले की भाँति शोभा पाने लगी। उन मुनियों के द्वारा सरस्वती का जल वैसा शुद्ध कर दिया गया- यह देखकर वे भूखे हुए राक्षस उन्हीं महर्षियों की शरण में गये। राजन! तदनन्तर वे भूख से पीड़ित हुए राक्षस उन सभी कृपालु मुनियों से बारंबार हाथ जोड़ कर कहने लगे- ‘महात्माओ! हम भूखे हैं। सनातन धर्म से भ्रष्ट हो गये हैं। ‘हम लोग जो पापाचार करते हैं, यह हमारा स्वेच्छाचार नहीं है। आप-जैसे महात्माओं की हम लोगों पर कभी कृपा नहीं हुई और हम सदा दुष्कर्म ही करते चले आये। इससे हमारे पाप की निरन्तर वृद्धि होती रहती है और हम ब्रह्म राक्षस हो गये हैं।[1] ‘स्त्रियां अपने योनि दोष जनित पाप (व्यभिचार) से राक्षसी हो जाती हैं। इसी प्रकार क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में से जो लोग ब्राह्मणों से द्वेष करते हैं, वे भी इस जगत में राक्षस होते हैं। ‘जो प्राणधारी मानव आचार्य, ऋत्विज, गुरु और वृद्ध पुरुषों का अपमान करते हैं, वे भी यहाँ राक्षस होते हैं। ‘अतः विप्रवरो! आप यहाँ हमारा उद्धार करें, क्योंकि आप लोग सम्पूर्ण लोकों का उद्धार करने में समर्थ हैं’।[2]
उन राक्षसों का वचन सुन कर एकाग्रचित्त महर्षियों ने उनकी मुक्ति के लिये महानदी सरस्वती का स्तवन किया और इस प्रकार कहा- ‘जिस अन्न पर थूक पड़ गयी हो, जिस में कीड़े पड़े हों, जो जूठा हो, जिस में बाल गिरा हो, जो तिरस्कारपूर्वक प्राप्त हुआ हो, जो अश्रुपात से दूषित हो गया हो तथा जिसे कुत्तों ने छू दिया हो, वह सारा अन्न इस जगत में राक्षसों का भाग है। अतः विद्वान पुरुष सदा समझ-बूझ कर इन सब प्रकार के अन्नों का प्रयत्न पूर्वक परित्याग करे। जो ऐसे अन्न को खाता है, वह मानो राक्षसों का अन्न खाता है’। तदन्नतर उन तपोधन महर्षियों ने उस तीर्थ की शुद्धि करके उन राक्षसों की मुक्ति के लिये सरस्वती नदी से अनुरोध किया।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
| दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
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| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
| सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध
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| दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश
| युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
| युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना
| कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना
| युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत
| सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद
| युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना
| दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना
| श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा
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| बलराम का आगमन और सम्मान
| भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ
| बलदेव की तीर्थयात्रा
| प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा
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| त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना
| वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन
| नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन
| बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश
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| अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा
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| सरस्वती नदी के जल की शुद्धि
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| भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना
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| समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी
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| भीमसेन का उत्साह
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| कृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना
| दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना
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| युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना
| युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना
| क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना
| युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत
| पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति
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| अर्जुन के रथ का दग्ध होना
| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
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| दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना
| दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना
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