सबै हिरानी हरि-मुख हेरैं।
घुँघट-ओट पट-ओट करैं सखि, हाथ न हायनि मेरैं।।
काकी लाज, कौन कौ डर है, कहा कहे भयौ तेरैं।
को अब सुनै, स्रवन हैं काकैं, निपट के निगम टेरैं।।
मेरे नैन न हौं नैननि की, जो पै जानति फेरैं।
सूरदास हरि चेरी कीन्ही, मन मनसिज के चेरैं।।1653।।